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 यूक्रेन से स्वदेश लौटे भारतीय छात्रों में अब करियर को लेकर बढ़ी चिंताए

 यूक्रेन से स्वदेश लौटे भारतीय छात्रों में अब करियर को लेकर बढ़ी चिंताए

नई दिल्ली । यूक्रेन में चिकित्सकीय अध्ययन के लिए गए भारत के 18 हजार छात्र सुरक्षित स्वदेश लौट चुके हैं, बाकी को भी वापस लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि, इन छात्रों की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होती हैं। यदि अगले कुछ महीनों के भीतर वहां हालात सामान्य नहीं होते हैं तो उनका करियर तबाह हो जाएगा। अनेक छात्र इसमें ऐसे हैं जो एमबीबीएस आखिरी वर्ष की पढ़ाई कर रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार, सरकार का पूरा ध्यान अभी उन्हें युद्ध क्षेत्र से निकालने पर और सकुशल उन्हें घर तक पहुंचाने पर है। युद्ध जैसी अपरिहार्य स्थिति में उनके करियर को बचाने के लिए क्या मदद हो सकती है, इस पर अभी नहीं सोचा गया है। लेकिन छात्रों एवं उनके अभिभावकों को आशा है कि सरकार जरूर इस मामले में उनकी मदद करेगी। एक दिन पहले स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने भी कहा कि छात्रों की सुरक्षित वापसी के बाद उनकी कोरोना जांच और टीकाकरण पर ध्यान दे रहे हैं। बाकी विषय जब सामने आएंगे तो उन पर विचार किया जाएगा।
जानकारों का कहना है कि अगर अगले कुछ दिनों में युद्ध रुक जाता है तो अगले कुछ महीनों के भीतर वहां हालत सामान्य होने की उम्मीद की जा सकती है। वहां की सरकार युद्ध के कारण हुई कोर्स की क्षति की भरपाई के लिए उपाय कर सकती है। इस प्रकार छात्र फिर से वहां जाकर अपनी पढ़ाई शुरू कर सकते हैं। यदि युद्ध लंबा खिंचता है तो फिर भारत सरकार को ही विकल्प तलाश करने होंगे। हालांकि, 18 हजार छात्रों को समायोजित करना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन ये छात्र अलग-अलग वर्षों के हैं इसलिए सरकार उच्च स्तर पर फैसला कर इन्हें एकबारगी नए सिरे से देश में पढ़ने का विकल्प दे सकती है। विभिन्न प्रदेशों के छात्रों को वहां के सरकारी या निजी मेडिकल कॉलेज में मौजूदा सीट संख्या के इतर समायोजित किया जा सकता है। ये सभी छात्र मेडिकल की पढ़ाई के सभी मापदंडों को पूरा करते हैं। यहां तक की नीट पास होने के बाद ही विदेशों में एडमिशन लेते हैं। हालांकि, मेरिट में नहीं होने के कारण उन्हें तब देश में मेडिकल की सीट नहीं मिली होगी, इसलिए वे विदेश गए।
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद सरकार को भी आभास हुआ है कि सस्ती शिक्षा और आसान दाखिला प्रकिया के कारण बड़े पैमाने पर छात्र पूर्व सोवियत देशों का रुख कर रहे हैं। इसलिए सरकार पर भी दबाव है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी छात्रों को देश में सस्ती शिक्षा मुहैया कराने का भरोसा दिलाया है। 
 

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