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एलएसी समाधान के लिए भारत ने चीन से की वार्ता की पेशकश, अगले सप्ताह चर्चा संभव

एलएसी समाधान के लिए भारत ने चीन से की वार्ता की पेशकश, अगले सप्ताह चर्चा संभव

नई दिल्ली । भारत के चीन के साथ सीमा विवाद के समाधान को लेकर लगातार प्रयास जारी हैं। भारत ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जारी सीमा गतिरोध को हल करने के लिए चीन के साथ अगले दौर की बातचीत के लिए सोमवार और मंगलवार का प्रस्ताव रखा है। एक रिपोर्ट में सरकारी सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी है। सरकार को रविवार से पहले बीजिंग से प्रतिक्रिया मिलने की उम्मीद है। चर्चा का उद्देश्य दोनों देशों के सैनिकों के बीच जारी गतिरोध को खत्म करते हुए सभी विवादित स्थलों से सैनिकों की वापस बुलाना है। एक अधिकारी ने कहा, 'बातचीत हॉट स्प्रिंग्स पर केंद्रित हो सकता है। यहां 2020 से दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने हैँ। दोनों पक्ष इस मुद्दे को हल करने और शांति बनाए रखने के इच्छुक हैं। इस मुद्दे पर समाधान हो जाने के बाद देपसांग में पीएलए द्वारा भारतीय गश्ती को रोकने जैसे अन्य पुराने मुद्दों को उठाया जाएगा।' पिछले दौर की बातचीत के बाद पैंगोंग त्सो, गलवान और गोगरा से सैनिकों की वापसी हुई। आपको बता दें कि मई 2020 में पीएलए द्वारा बड़े पैमाने पर घुसपैठ किए जाने के बाद से कुछ क्षेत्रों में 50,000 से अधिक सैनिक एक-दूसरे का सामना कर रहे हैं।  अधिकारी ने कहा, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की हाल की रूस यात्रा और यूक्रेन में चल रहे घटनाक्रम को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर सुरक्षा बलों को अलर्ट पर रखा गया है।
भारतीय सेना, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के साथ, चीन के साथ नियंत्रण रेखा की रक्षा करती है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में नियंत्रण रेखा की कुल लंबाई 3,488 किमी है। आपको यह भी बता दें कि चीन अरुणाचल प्रदेश के साथ 1,126 किमी और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के साथ 1,597 किमी की सीमा साझा करता है। चीन हिमाचल प्रदेश साथ 200 किमी, उत्तराखंड के साथ 345 किमी और सिक्किम के लिए 220 किमी की सीमा साझा करते है। पश्चिमी, मध्य और पूर्वी क्षेत्रों में इसकी ऊंचाई 9,000- 18,700 फीट है।
पूर्वी लद्दाख में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच झड़पें पीएलए की मई 2020 की घुसपैठ के बाद हुईं। इसके बाद 14 दौर की सैन्य-राजनयिक वार्ता हुई। जनवरी में अंतिम वार्ता हुई थी। इस दौरान दोनों पक्षों के बीच स्पष्ट और गहन विचारों का आदान-प्रदान हुआ, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। रूस के आक्रमण और यूक्रेन के खिलाफ युद्ध के बाद पिछले कुछ दिनों में विभिन्न संयुक्त राष्ट्र मंचों पर रूस के खिलाफ प्रस्ताव लिए जाने पर भारत और चीन ने मतदान से परहेज किया है। 
 

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