बिस्तर पर लेटे हर पल बीमारी की तड़प और शरीर के एक-एक अंग का साथ छोडऩा। इलाज होने के बाद भी डॉक्टर, नर्स और परिजन हर कोई पीड़ा को समझ रहा था। मगर अफसोस सालाना करोड़ों रुपये का इलाज होने के कारण सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था मूकदर्शक थी। मासूम बिटिया का बेबस पिता उसकी जिंदगी के लिए पिछले सात साल में न जानें कितने दरवाजे खटखटाए, अफसरों से मिन्नतें भी कीं लेकिन बदले में बुधवार को उसे अपनी मासूम का जनाजा ही नसीब हुआ। दिल्ली के लोकनायक अस्पताल से चली बेबी इन्सा की फाइल कभी दिल्ली स्वास्थ्य विभाग, स्वास्थ्य मंत्रालय के अलावा दिल्ली हाईकोर्ट तक पहुंची। कई सामाजिक संगठन भी ओखला निवासी पिता साजिद के हक में खड़े हुए लेकिन इन्सा की मौत की खबर चंद घंटों में ही लोकनायक अस्पताल से लेकर स्वास्थ्य महकमे, एम्स और हाईकोर्ट तक जा पहुंची। हर कोई स्तब्ध था, आंखें नम थी और सिस्टम के खिलाफ गुस्सा। संक्रमण फैलने के चलते इन्सा ने दम तोड़ दिया। साल 2014 में मोहम्मद अहमद नामक एक मरीज की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर कोई मरीज ऐसी बीमारी से लड़ रहा है, जिसका इलाज संभव है तो उसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी। इसी कानून के तहत अब बेबी इन्सा के पिता साजिद उन लाखों बच्चों की जिंदगी की भीख मांग रहा है जिनके माता पिता हर दिन अपने कलेजे के टुकड़ों की मौत को अपनी चौखट से भगाने में लगे हैं।