नई दिल्ली । कांग्रेस हाईकमान ने विजयी प्रत्याशियों को केंद्रीय आब्जर्वर की निगरानी में रखने के फैसले से एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश की है। इससे एक तरफ जहां पूरी चुनावी प्रक्रिया सीधे हाईकमान के हाथ होगी वहीं, स्थानीय क्षत्रपों को अपने समर्थक विधायकों के साथ अलग से खिचड़ी पकाने का भी मौका नहीं मिल पाएगा। वर्ष 2002 और वर्ष 2012 में पार्टी नेताओं के बीच बने सत्ता संघर्ष की स्थिति आज भी सभी के जेहन में ताजा है। इस चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनने पर सत्ता संघर्ष की आशंका लग रही है। इस बार जहां पूर्व सीएम हरीश रावत कैंप रावत को मुख्यमंत्री पद का स्वभाविक दावेदार मानता है। वहीं, नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह के समर्थक सरकार बनने पर प्रीतम को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर देखना चाहते हैं। केंद्रीय आब्जर्वर के साथ होने की वजह से विधायकों पर कोई भी कैंप दबाव बनाने की स्थिति में नहीं रहेगा कांग्रेस पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने जा रही है। कोई लाख दावे करता रहे पर उत्तराखंड की जनता ने कांग्रेस के पक्ष में अपनी मुहर लगाई है। भाजपा दूर-दूर तक सत्ता में वापसी नहीं करने जा रही है।
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हरीश रावत-प्रीतम सिंह के हाथ से मतगणना से पहले छीनी बाजी