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पंजाब में कांग्रेस ने खो दी जमीन

पंजाब में कांग्रेस ने खो दी जमीन

चंडीगढ़ । नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देशभर में भाजपा की लहर के बीच कांग्रेस ने जो राज्य बचाए रखे थे, उनमें से एक मजबूत गढ़ पंजाब था, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह के अलग हो जाने का कांग्रेस को यहां साफ तौर पर नुकसान होता दिख रहा है। अगर अंतिम नतीजे अब तक सामने आए रुझानों के मुताबिक ही रहते हैं तो यहां कांग्रेस का प्रदर्शन 1977 में आपातकाल के बाद हुए विधानसभा चुनाव से भी खराब रहेगा। तब कांग्रेस 17 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। वहीं, 1984 में सिख विरोधी दंगों के बाद 1985 में जब राज्य में विधानसभा चुनाव हुए, तब भी कांग्रेस 32 सीटें जीती थी। 1997 में उसका प्रदर्शन सबसे खराब रहा था, जब पार्टी ने 14 सीटें जीती थीं। पंजाब की राजनीति के लिए सबसे मुश्किल समय 1980-90 का दौर रहा। पंजाब में आतंकवाद के मामले बढऩे के चलते 1987 से 1992 तक राष्ट्रपति शासन लगा रहा। 1992 में चुनाव में हुए चुनाव में पूरे राज्य में महज 20 फीसदी वोटिंग हुई और कांग्रेस ने 87 सीटें जीतते हुए पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई। इन चुनाव में अकाली दल को महज दो सीटें ही मिलीं और बाकी कोई भी पार्टी दहाई का आंकड़ा नहीं छू पाई। लेकिन जल्द ही पंजाब में फैले आतंकवाद को खत्म करने के नाम पर कांग्रेस सरकार पर बड़े पैमाने पर दमन और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगने लगे। इसका सीधा फायदा अकाली दल मिला, जिसने भाजपा के साथ गठबंधन किया। दोनों पार्टियों ने विधानसभा में कुल (अकाली दल की 75+भाजपा की 18) 92 सीटें हासिल कीं। वहीं, कांग्रेस अपने सबसे खराब प्रदर्शन यानी 14 सीटों के आंकड़े पर सिमट गई।
अब कांग्रेस के पास कितने राज्य
अगर कांग्रेस पंजाब हार जाती है, तो उसके पास सिर्फ दो राज्य- छत्तीसगढ़ और राजस्थान ही बचेंगे। चार और राज्यों में उसके सहयोग वाले गठबंधनों की सरकार है। इनमें महाराष्ट्र, झारखंड और तमिलनाडु शामिल हैं। इसके अलावा जिन चार अन्य राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, उनमें से मणिपुर, गोवा और उत्तराखंड में भी कांग्रेस किसी खास फायदे में नहीं दिख रही है।
 

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