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 किसानों की नाराजगी को ठीक से भुना नहीं पाई सपा, कांग्रेस के काम नहीं आईं प्रियंका की घोषणाएं

 किसानों की नाराजगी को ठीक से भुना नहीं पाई सपा, कांग्रेस के काम नहीं आईं प्रियंका की घोषणाएं

नई दिल्ली । पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे दर्शाते हैं कि दिल्ली की सीमा पर सालभर से ज्यादा वक्त तक चले किसान आंदोलन का चुनाव में कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में जहां सत्तारूढ़ भाजपा सत्ता बरकरार रखने में सफल रही तो वहीं दूसरी ओर बदलाव की आंधी में पंजाब में आम आदमी पार्टी ने जबर्दस्त जीत हासिल की।
माना जा रहा था कि वापस लिए गए कृषि कानूनों के मुद्दे पर चले किसान आंदोलन का उत्तर प्रदेश पश्चिमी एवं किसानों के प्रभाव वाले इलाकों पर असर पड़ेगा। इसे ध्यान में रखते हुए ही समाजवादी पार्टी ने इस बार राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) से गठबंधन किया था, ताकि जयंत चौधरी के साथ आने के बाद समाजवादी पार्टी को जाट मतदाताओं का साथ मिलेगा। इसके साथ ही सपा ने इस बार एक नया नैरेटिव देने का प्रयास किया। सपा ने इस बार यादव प्लस मुस्लिम समीकरण से आगे बढ़ाते हुए पूरे पिछड़े वर्ग को अपने साथ लाने का प्रयास किया और वह इसमें काफी हद तक सफल भी हुए। इसके साथ मुस्लिमों का ध्रुवीकरण भी उनकी रणनीति का प्रमुख हिस्सा रहा और इसमें भी वह पूरी तरह सफल रहे। मुस्लिम समाज ने भाजपा को हराने के लिए अखिलेश पर ज्यादा विश्वास किया। यही वजह रही कि एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को मुस्लिम समाज में पूरी तरह सेखारिज कर दिया। सपा के इस रणनीतिक बदलाव की वजह से ही उसे 2017 में हुए चुनाव की तुलना में इस बार लगभग तीन गुना ज्यादा सीटें मिलीं हैं।   
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने चुनाव प्रचार के दौरान लखीमपुर खीरी में किसानों को गाड़ी से कुचले जाने और केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के पुत्र के इसमें शामिल होने से जुड़े आरोपों का विषय भी उठाया था, लेकिन इस जिले की सीटों पर भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन किया। उत्तर प्रदेश में भाजपा का प्रदर्शन 2017 की तरह तो नहीं रहा, लेकिन राज्य में भाजपा की निर्णायक जीत से, साढ़े तीन दशक से ज्यादा वक्त बाद कोई मुख्यमंत्री कार्यकाल पूरा करने के बाद दोबारा सत्ता में आ रहा है। 
भाजपा उत्तर प्रदेश के साथ ही उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भी सत्ता में वापसी की है। उत्तराखंड में पहली बार ऐसा हुआ है कि राज्य की सत्ताधारी पार्टी ने फिर से सत्ता में वापसी की है। उत्तराखंड में किसानों के प्रभाव वाली कई सीटों पर भाजपा ने निर्णायक बढ़त बनाई या जीत दर्ज की। इनमें हरिद्वार, कोटद्वार, काशीपुर, रूड़की आदि सीटें शामिल हैं। 
किसान आंदोलन का प्रभाव पंजाब में दिखा, लेकिन इसका पूरा फायदा आम आदमी पार्टी को हुआ। 117 सदस्यीय पंजाब विधानसभा के लिए हुए चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 92 सीटें जीती हैं और आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने पार्टी की जीत को क्रांति करार दिया है। राजनीतिक दृष्टि से पंजाब माझा, मालवा और दोआबा के रूप में तीन हिस्सों में बंटा है। मालवा में 69 सीट, माझा में 25 और दोआबा में 23 सीटें हैं। सबसे ज्यादा सीटों वाला मालवा क्षेत्र किसानों का गढ़ माना जाता है। पंजाब के चुनाव में यही इलाका निर्णायक भूमिका निभाता है। विश्लेषकों के अनुसार, आम आदमी पार्टी का आधार भी गांवों में ज्यादा है। पिछली बार उसकी 20 सीटों में अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों से ही थी। चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी ने इस बार मालवा सहित सभी इलाकों में शानदार प्रदर्शन किया है और राज्य में उसकी सरकार तय है। ऐसा जान पड़ता है कि पार्टी का नारा इक मौका भगवंत मान ते, केजरीवाल नूं मतदाताओं को भा गया था। आम आदमी पार्टी ने विद्यालयों और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के जरिए पंजाब में दिल्ली के शासन मॉडल को लागू करने की बात भी कही।
आप ने मतदाताओं को लुभाने के लिए महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपए, 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली और 24 घंटे बिजली आपूर्ति जैसे वादे भी किए थे। जिसकी वजह से पंजाब में सत्तारूढ़ कांग्रेस को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस ने 117 सदस्यीय पंजाब विधानसभा में 18 सीटों पर जीत दर्ज है। जबकि, पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को गुरुवार को भदौर और चमकौर साहिब सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है। पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को भी पराजय का सामना करना पड़ा। पंजाब विधानसभा चुनाव के परिणाम से शिरोमणि अकाली दल और बादल परिवार को तगड़ा झटका लगा है। चुनाव में पार्टी को सिर्फ तीन सीटों से ही संतोष करना पड़ा। तीन दशकों में यह पहली बार होगा कि 117 सदस्यीय पंजाब विधानसभा में बादल परिवार का कोई प्रतिनिधित्व नहीं होगा।
 

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