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कांग्रेस की हार के मायने!

कांग्रेस की हार के मायने!

कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद ईवीएम के माध्यम से 'लोकतंत्र की हत्या किए जाने' का आरोप लगाते हुए  कांग्रेस मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन किया। उन्होंने हाथों में तख्तियां ले रखीं थीं जिन पर 'ईवीएम से हो रही है लोकतंत्र की हत्या' लिखा हुआ था।हालांकि ईवीएम को लेकर कांग्रेस ने कोई अधिकृत प्रतिक्रिया नही दी है।अलबत्ता उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा ईवीएम भरी गाड़ी मौके पर पकड़े जाने के बाद चुनाव आयोग ने एक एडीएम को निलंबित जरूर किया।
कांग्रेस उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर व गोवा में कांग्रेस आपसी गुटबाजी व सही प्रत्याशियों का चयन न कर पाने के कारण बुरी तरह से हार गई। इस चुनाव में आम जनता याद दिलाने पर भी नोट बन्दी के दुखों को भूल गई।किसान तंगहाली में की गई आत्म हत्याओं को भूल गए,बेरोजगारी चुनावी मुद्दा तक नही बन पाया।महिलाओं को उनका हक,भयमुक्त समाज व भ्र्ष्टाचार मुक्त शासन अब तक क्यो नही हो पाया?ये सारे सवाल मोदी के सम्मोहन में दबकर रह गए है।कांग्रेस आम लोगो को मोदी सरकार व भाजपा शासित राज्यों की नाकामी समझाने में नाकाम रही है। भाजपा में अकेले मोदी, उनकी पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा व गृह मंत्री अमित शाह ही भाजपा के लिए खेवनहार बने ।  कांग्रेस में राहुल गांधी व उनकी बहन प्रियंका गांधी के कंधों पर पूरे चुनाव प्रचार का भार टिका था।बाकी नेता या तो असरदार नही थे या फिर वे अपना समय नही दे पाए।साथ ही इस चुनाव में जमीनी स्तर के नेताओं को साथ लेकर भी नही चला गया।ज्यादा तर जनसभाओं में हवाई नेता मंचो पर कब्जा जमाए रहे और जिनके प्रयासों से वोट मिलती उन्हें पास तक फटकने नही दिया गया।अधिकांश कार्यकर्ताओ का चुनाव प्रचार में उपयोग ही नही किया गया।आम वोटरों तक पहुंचने में भी कांग्रेस पार्टी कार्यकर्ता नाकाम रहे।ऐसे में उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर व गोवा मे कांग्रेस को विपक्ष में बैठना जरूर अखरेगा क्योंकि कांग्रेस सत्ता में आने का ख्वाब देख रही थी।उत्तराखंड समेत पांचों राज्यो में कांग्रेस को मिली हार को लेकर विचार मंथन जरूरी है।यह भी जरूरी है कि पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए हाईकमान के दरवाजे खोलने की पहल हो, तभी जमीनी हकीकत से हाईकमान रूबरू हो सकता है।टिकट आवंटन के समय पार्टी के प्रति वफ़ादारों को तरजीह मिले तो काफी कुछ ठीक हो सकता है।इस चुनाव के परिणाम मौजूदा जैसे न होते यदि कांग्रेस ने एकजुटता के साथ चुनाव मैदान में उतरकर यह चुनाव लड़ा होता।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी  की अगुवाई में लड़ा गया चुनाव कांग्रेस की दिशा और दशा बदलने में नाकाम साबित हुआ है। 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' के नारे के साथ कांग्रेस ने यह चुनाव सभी 403 सीटों पर अकेले दम पर लड़ा था जिसमें 40 फीसदी सीटे महिला प्रत्याशियों को देने का न सिर्फ ऐलान प्रियंका ने किया बल्कि उतने टिकट भी दिए। इसका मकसद प्रदेश की महिला आबादी को कांग्रेस के प्रति आकर्षित करना था मगर चुनाव परिणाम दिखाते हैं कि प्रियंका का यह प्रयोग बुरी तरह असफल हुआ है। सीटों के नुकसान के साथ पार्टी का वोट प्रतिशत भी गिरा है। 2017 में पार्टी ने सात सीटे जीतने के साथ 6़ 25 फीसदी वोट हासिल किये थे जबकि मौजूदा चुनाव में उसका वोट प्रतिशत 2़ 41 पर टिक गया है।प्रियंका ने पिछले करीब तीन साल से संगठनात्मक ढांचा सुधारने के लिये काफी काम किया मगर चुनाव परिणाम उनकी ईमानदार कोशिश को झुठलाते दिखायी पड़े।
 उत्तराखंड व पंजाब में कांग्रेस को जनता ने नही बल्कि उनके अपनो ने ही हराया है।चुनाव से छ महीने पहले ही एक दुसरे को मुख्यमंत्री न बनने देने के लिए एक दूसरे की टांग खींचने का खेल शुरू हो गया था।पंजाब में अच्छी खासी चलती हुई कैप्टन अमरेंद्र सरकार को गिराना, अतिमहत्त्वाकांक्षी नवजोत सिंह सिद्धू को संगठन की बागडोर सौंपना जहां घाटे का सौदा रहा ,वही उत्तराखंड में कही हरीश रावत मुख्यमंत्री न बन जाए इसके लिए उनकी राह में कांटे बिछाने की भरपूर कोशिश हुई।यहां तक कि उन्हें अपनी पसंद की रामनगर विधानसभा से बेदखल कर नामांकन के आखिरी समय मे लालकुआं भेज दिया गया।इस आपसी कलह के कारण ही हरीश रावत व रणजीत रावत दोनो की हार हुई।संगठन स्तर पर जनाधार वाले साफ छवि के कार्यकर्ताओं को चुनाव की जिम्मेदारी न सौंपकर सिफारिशों के आधार पर रेवडी की तरह पद व जिम्मेदारी बांटी जाती रही।जो पद या फिर जिम्मेदारी लेने के बाद क्षेत्र में गए ही नही सिर्फ मीडिया की सुर्खियां बनते रहे।भाजपा की सरकार में पांच साल मंत्री रहकर कांग्रेस में अपने विधायक पुत्र के साथ वापस आए यशपाल आर्य के पुत्र को टिकट देने के लिए महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष सरिता आर्य का टिकट काटना भी कांग्रेस को भारी पड़ा और वह भाजपा से टिकट लेकर विधायक बन गई।इसी प्रकार कांग्रेस की 40 वर्षो तक सेवा करते रहे कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को सिर्फ इस कारण निष्कासित करना कि वे वनाधिकार मुद्दे पर भाजपा नेता प्रहलाद जोशी से मिले,कतई गलत था।प्रदेश कांग्रेस प्रभारी को उनके खिलाफ कार्यवाही से पहले उनका पक्ष जानना चाहिए था।इसी गलती की वजह से किशोर उपाध्याय को भाजपा में जाना पड़ा जहां से वे टिहरी विधायक बन गए।हरिद्वार जिले में भी कांग्रेस हाईकमान ने धरातल की अनदेखी की है।खानपुर में स्थानीय निष्ठावान कार्यकर्ता को टिकट न देकर प्रदेश प्रभारी के चेहते बहारी सुभाष चौधरी को टिकट देने का ही परिणाम रहा कि वह अपनी जमानत भी नही बचा सके।यह सीट कांग्रेस को मिल सकती थी अगर यहां से उदय सिंह पुंडीर या फिर वीरेंद्र रावत में से किसी एक को टिकट दिया गया होता।लक्सर में स्थानीय मजबूत सैनी समाज के नेताओं के होते हुए भी देहरादून से प्रत्याशी आयातित करना कांग्रेस को भारी पड़ा और कांग्रेस यहां बुरी तरह हार गई।रुड़की में इस बार कांग्रेस की लॉटरी लग सकती थी।भाजपा संगठन के कई बड़े पदाधिकारियों की भाजपा प्रत्याशी  प्रदीप बत्रा के प्रति बेरुखी कांग्रेस की जीत का आधार बन सकती थी बशर्ते दबंग के बजाए किसी सहज छवि के निष्ठावान कार्यकर्ता को पार्टी प्रत्याशी बनाया गया होता।हालांकि कांग्रेस प्रत्याशी यशपाल राणा ने भी मजबूती के साथ चुनाव लड़ा और अगर जो लोग टिकट मांग रहे थे उन सभी ने खुलकर उनका साथ दिया होता तो कांग्रेस रुड़की से जीत सकती थी।मंगलौर में तो काजी निजामुद्दीन को करीब छ सौ के अंतर से ही हार मिली।यहां भी संगठन नदारद ही था,पार्टी ने वर्षो से रिक्त पड़े जिलाध्यक्ष पद पर किसी को बैठाने की कोशिश नही की,परिणाम हार के रूप में हमारे सामने है।इसी तरह से प्रदेश कांग्रेस गणेश गोदियाल का मामूली अंतर से हारने,नवप्रभात की हुई पराजय,मंत्री प्रसाद नैथानी जैसे नेता का विधानसभा न पहुंच पाना अखरता रहेगा।
 उत्तराखंड में अभी तक जनता हर 5 साल में सरकार बदल देती थी। यही वजह है कि यहां अभी तक 2002 में राज्य बनने के बाद से चार बार विधानसभा चुनाव हुए हैं. हर बार अलग सरकार बनी है। 2002 में यहां कांग्रेस ने सरकार बनाई थी।वहीं, 2007 में बीजेपी, 2012 में कांग्रेस और 2017 में बीजेपी ने सरकार बनाई। लेकिन अब बीजेपी ने यह ट्रेंड तोड़ दिया है।उत्तराखंड में कुल 70 विधानसभा सीटो में से भाजपा को 47, कांग्रेस को19, बसपा को 2 निर्दलीय को 2 सीटे मिलने से भाजपा स्पष्ट बहुमत में आ गई है।उत्तराखंड की जनता ने कांग्रेस का घोषणा पत्र व किये गए चुनावी वायदे दोनो नकार दिए है।
पंजाब के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी कांग्रेस की रणनीतियों से खासे खफा हैं।  मनीष तिवारी ने कहा कि कांग्रेस के इस प्रदर्शन पर राहुल गांधी ही जवाब देंगे। पार्टी की नीतियों से खफा मनीष तिवारी की तल्खी अभी भी बरकरार है। मनीष तिवारी को सांसद होने के बाद भी पंजाब में पार्टी का स्टार प्रचारक तक नहीं बनाया था। पंजाब ही नहीं बल्कि जिन पांच राज्यों में चुनाव हुआ वहां कांग्रेस के लचर प्रदर्शन पर मनीष तिवारी का कहना है कि शाम तक परिणाम आ जाएंगे उसके बाद ही कुछ आगे बात की जा सकेगी। दरअसल कांग्रेस के नाराज नेता लगातार पार्टी की नीति रणनीति और नेतृत्व पर सवाल उठाते रहे हैं। अब जब पांच राज्यों के चुनाव परिणाम कांग्रेस की अपेक्षा के अनुरूप नहीं आए हैं तो निश्चित तौर पर कांग्रेस के नाराज नेताओं को बड़ा मौका मिला है।
 पंजाब समेत अन्य राज्यों के परिणामों का पहले से ही अंदाजा था। जब तक पार्टी में चापलूस और नेतृत्व की आंखों में धूल झोंकने वाले लोगों को बाहर नहीं किया जाता है तब तक पार्टी ऐसे ही बिखराव की ओर बढ़ती रहेगी। पंजाब में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई है और उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की मेहनत बेकार चली गई है। एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि पंजाब में कांग्रेस के कई कद्दावर नेताओं को दरकिनार कर जिस तरीके से टिकट वितरण किया गया और पंजाब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू का पूर्व मुख्यमंत्री रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच तू-तू मैं-मैं हुई, उससे पार्टी के कार्यकर्ताओं का न सिर्फ मनोबल टूटा बल्कि उनको दूसरे बेहतर विकल्प भी मिले। वो कहते हैं कि चुनाव के दौरान पंजाब से पार्टी के बड़े नेताओं का अलग हो जाना भी पार्टी नेतृत्व की कमजोरी रही। 
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि नवजोत सिंह सिद्धू ने जिस तरीके से खुले तौर पर अपने मुख्यमंत्री और दूसरे नेताओं को आड़े हाथों लिया उससे भी पब्लिक के बीच में पार्टी के प्रति आस्था नहीं बढ़ी। उक्त नेताओं का कहना है कि सिर्फ पंजाब का ही यह हाल नहीं था बल्कि उत्तराखंड में भी लगातार अंदरूनी राजनीति के चलते कांग्रेस का हश्र बुरा हुआ। उत्तर प्रदेश को लेकर कांग्रेस के नाराज नेताओं का कहना है कि वहां पर तो मैनेजमेंट थी बेहतर नहीं था। कांग्रेस के एक नाराज वरिष्ठ नेता कहते हैं कि कांग्रेस ने जिस एजेंडे के तहत प्रदेश में टिकट बांटे थे उससे अंदाजा लग रहा था कि पार्टी वहां महज खानापूर्ति ही कर रही है।पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का पूरी तरीके से सूपड़ा साफ होता जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस अंदरूनी राजनीति से जूझती जा रही है। यही बड़ी वजह है कि पार्टी मजबूत होने की बजाय अंदर ही अंदर खोखली हो रही है। जिस तरीके से पंजाब में कांग्रेस ने दलित मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर एक बड़े जातिगत समीकरणों को साधने की कोशिश की थी लेकिन आम आदमी पार्टी की सुनामी में सारे जातिगत समीकरण ध्वस्त हो गए। राजनीतिक विश्लेषक जय सिंह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी ने अपनी पूरी ताकत लगा दी लेकिन रुझान से पता चल रहा है कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत खराब रहा। गोवा मणिपुर और उत्तराखंड में भी कांग्रेस का  बदहाल रहा है।
 कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का कहना है कि पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के बाद अब जो नतीजे सामने आए हैं उससे कांग्रेस पार्टी को निराशा हाथ लगी है। पंजाब में पार्टी को जीत की बड़ी उम्मीद थी लेकिन इस राज्य को गंवाने के बाद अब पार्टी देश के एक और राज्य की सत्ता से बाहर हो गई। हालत यह हो गई कि चरणजीत सिंह चन्नी और पार्टी के बड़े चेहरे नवजोत सिंह सिद्धू खुद चुनाव हार गए।
उत्तर प्रदेश में खुद प्रियंका गांधी ने पार्टी की तरफ से चुनाव प्रबंधन की बागडोर थामी थी लेकिन उनकी भी मेहनत काम नहीं आई। उत्तराखंड, गोवा तथा मणिपुर कही भी पार्टी के लिए उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं रहे। राहुल गांधी ने कहा, 'जनादेश को विनम्रता से स्वीकार करते हैं, सीखेंगे और भारत की जनता के हितों के लिए काम करते रहेंगे।' राहुल गांधी ने पार्टी कार्यकर्ताओं का शुक्रिया अदा भी किया और कहा कि पार्टी इस हार से सबक जरूर लेगी। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

(लेखक- डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट)
 

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