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भक्ति और भाईचारे के रंगों से सजा है होली का त्यौहार 

भक्ति और भाईचारे के रंगों से सजा है होली का त्यौहार 

हमारे भारत देश में तरह-तरह के त्यौहार हैं। सबका अपना-अपना महत्व है और अपने अपने तौर-तरीके। लेकिन इन सब त्योहारों में भी होली का जो महात्म्य है, उसकी तुलना भारत तो क्या संसार के किसी त्योहार से करना कठिन है। होली के पर्व में जहां भक्ति के रंग हैं, वही भाईचारे की मिठास भी है।
 शास्त्रों की दृष्टि से देखें तो होली विशुद्ध रूप से सत्य निष्ठा का पर्व है। ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति का त्यौहार है। भक्त प्रहलाद अपने पिता के खिलाफ सत्य और ईश्वर की भक्ति पर अडिग रहते हैं और इस सत्य पर कायम रहने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने को भी तत्पर रहते हैं। इस तरह होली का त्यौहार हमें बताता है कि हमें हर सूरत में बुराई से दूर रहना है, उस स्थिति में जबकि बुराई हमारा सबसे कोई सम्मानित या प्रिय व्यक्ति भी कर रहा हो। भक्त प्रहलाद की कथा में होलिका का दहन हो जाता है और प्रहलाद पूरी तरह सुरक्षित होकर बाहर निकल आते हैं। इस कथा का मर्म यही है कि बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों ना हो अंततः वह अच्छाई के सामने धू-धू करके जल जाती है।
इस गहरे शास्त्रीय और आध्यात्मिक अर्थ के साथ ही होली का दूसरा स्वरूप है, जो होलिका दहन के अगले दिन हमें दिखाई देता है। लोग एक दूसरे को रंग गुलाल लगाते हैं, जिनसे वर्षों से बोलचाल खत्म हो गया हो, उनसे भी जाकर मिलते हैं और प्रेम के सूखते हुए पौधे में रंगों की बौछार डालते हैं।
यह रंगों की बौछार हमारे भारतीय समाज को इतनी प्रिय है कि बहुत से इलाकों में होली के दिन और दोज के दिन यानी 2 दिन तक होली मनाई जाती है। मालवा और भोपाल के इलाकों में होली के बाद रंग पंचमी पर एक बार फिर से उससे उससे ज्यादा उत्साह के साथ रंगों का त्योहार मनाया जाता है।
यही एक त्यौहार ऐसा है जिसमें मनुष्य को अनुशासन से बाहर आने की छूट हमारा समाज देता है। रंगों की तरंग में बड़े और छोटे का सख्त अनुशासन शिथिल हो जाता है। जिनसे हमेशा मान मर्यादा में बातचीत होती है उनसे भी हंसी मजाक करने की छूट मिल जाती है। सामान्य तौर पर किसी भी पर्व में अपने-अपने दायरे में रहने वाले स्त्री और पुरुष भी कम से कम इस त्यौहार पर रंग खेलने के अधिकारी बन जाते हैं।
जगह-जगह होली मिलन समारोह होते हैं, जो समाज में एक नए किस्म की सामाजिकता और प्रीति का संचार करते हैं। जाहिर है हमारे पुरखों ने एक ऐसे समय पर होली का त्यौहार रखा जब सर्दी लगभग जा चुकी होती है और गर्मी आने को आतुर होती है। ऐसे मौसम में रंगों की फुहार शरीर और मन दोनों को शीतलता देती है।
इतने सुंदर और सौहार्द के पर्व में कुछ लोग जानबूझकर नशे की अती भी कर लेते हैं और कभी कभी इसी उन्माद में झगड़े भी हो जाते हैं। इसलिए त्यौहार मनाते समय हम सब इस बात का ध्यान रखेंगे कि होली भाईचारे का त्यौहार है, नशा करके भाई का भाई से झगड़ा करने का त्यौहार नहीं है। उल्लास का त्यौहार है तो मौज मस्ती पर कोई रोक तो है नहीं, लेकिन ऐसा कोई काम ना करें कि पूरे साल तक होली कोई अवसाद हमारी या हमारे दोस्तों के दिलों में छोड़ जाए।
(लेखक- प्रवीण कक्कड़ )
 

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