भारत की राजनीति में वर्षो तक एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस पार्टी विगत एक दशक से कड़े राजनीतिक संघर्ष के दौर से गुजर रही है। गत दिवस सम्पन्न पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर उसे निराशा हाथ लगी। 2017 में इन राज्यों में जहां उसका प्रदर्शन यूपी छोडकर अन्य राज्यों में सम्मानजनक था 2022 में वह भी उसके हाथ से निकल गया। आंतरिक लड़ाई के चलते पंजाब उसकी सरकार थी वहां उसे शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा।
दरअसल कांग्रेस की मुख्य समस्या यह है कि वह अपने पराजय और पतन पर ईमानदारी के साथ आत्ममंथन करके जो कमियां और गलतियां है उसके सुधार की तरफ कोई सार्थक और ठोस पहल नहीं कर पाती। केन्द्रीय नेतृत्व और राज्य नेतृत्व के बीच तालमेल की वजह से कांग्रेस पार्टी भीतर ही भीतर अपनी नींव को खोखली कर रही है। 2014 के बाद एक-एक करके कांग्रेस के हाथ से अनेक राज्य जहां उसकी सरकार थी हाथ से निकल गये। पार्टी का राज्य नेतृत्व हो या केन्द्र अपनी जमीनी कार्यकर्ता की आहत होती भावनाओं को समझने में विफल है। एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता के अनुसार अफसोस होता है कांग्रेस का बिखराव देखकर ?
भाजपा दुष्प्रचार करके देश में राज कर रही है और कांग्रेस सच बोलकर संघर्ष के दौर में उलझी है। कांग्रेस को यदि अपने स्वर्णीम दौर में वापस लौटना है तो उसे जिले से लेकर राज्य और केन्द्र तक के संगठन को मजबूत करना पड़ेगा। बूथ लेबल पर कांग्रेस के पास कागजों में कमेटियां है पर धरातल पर इनकी उपलब्धियां शून्य है। कमजोर संगठन के सहारे कांग्रेस बहुत बड़ा राजनीतिक लक्ष्य हासिल नहीं कर सकती।
भले ही लोग गांधी परिवार के नेतृत्व को लेकर सवाल खड़ा करें पर वास्तविकता यह है कि श्रीमती सोनिया गांधी हो या राहुल गांधी या प्रियंका गांधी को जो कांग्रेस मिली है वह संघर्ष वाली कांग्रेस है जहां पर उनके लिये पार्टी को एकजुट रख पाना एक मुश्किल काम बनता जा रहा है। कांग्रेस के भीतर अनुशासनहीनता और नेताओं के बीच संवादहीनता बढ़ने के कारण जिस कांग्रेस नेता को जो आता है वह उसे बोल देता है, जो बाद में उनके विरोधियों को लिये राजनीतिक मुद्दा बन जाता है।
राजनीति के मैदान में कई तरह की विषमताओं से गुजरती कांग्रेस को यदि आज जरूरत है ऐसे नेतृत्व की जो अंतिम छोर में खड़े पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं को समझे और उसके अनुरूप पार्टी को आगे ले जाने एक मजबूत रोडमैप और होमवर्क तैयार करें। कांग्रेस के संगठन महिला कांग्रेस, युवक कांग्रेस, एनएसयूआई, सेवादल जैसे संगठन को वर्तमान राजनीति के अनुरूप खड़ा करना पड़ेगा। पुराने कार्यप्रणाली से यह संगठन पार्टी को बहुत बड़ा लाभ नहीं दे पायेगें। जब तक इन संगठनों के पास घर-घर जाकर कार्य करने वाले प्लान नहीं होगें ये कांग्रेस को मजबूती नहीं दे सकते।
यह कटु सत्य है कि कांग्रेस एक विचारधारा है जो हमेशा बहते रहेगी। पर यह तभी संभव है जब आप संगठित होकर काम करेगें। कांग्रेस पार्टी जब सत्ता में भी तब मक्खन मलाई खाने वाले नेता संघर्ष के दौर में कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल खड़ा करके भाजपा में शामिल हो रहे है जो एक बेईमानी से ज्यादा कुछ नहीं है। वहीं दूसरी ओर यह भी सच है कि भाजपा को चुनौती भी कांग्रेस दे सकती है दूसरी कोई पार्टी नहीं। 2019 के चुनाव के बाद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से राहुल गांधी का त्यागपत्र देना गलत फैसला था, उनको इस पद पर रहकर अपने राजनीतिक नेतृत्व क्षमता से आगे कार्य करना था। चुनाव मंें जीत हार एक सामान्य घटनाक्रम होता है। 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में राहुल के नेतृत्व में ही कांग्रेस ने भाजपा को उसके इस गढ़ में पानी पिला दिया था पर उस सफलता को कांग्रेस संभाल नहीं पाई।
अनेक तरह के राजनीतिक संकट में उलझी कांग्रेस का नेतृत्व इससे बाहर कैसे निकलेगा यह बड़ा सवाल कांग्रेस कार्यकर्ताओं में चर्चा का केन्द्र है। वर्तमान मोदी सरकार जनता से जुड़े अनेक मुद्दों पर विफल है पर मीडिया प्रोपोगंडा और संगठन मजबूत होने के कारण वह जनता में अपना प्रभाव बनाये हुए है। वास्तविकता के धरातल पर नोटबंदी हो या फिर कोरोना से उत्पन्न संकट यह फिर चीन नेपाल के साथ सीमा विवाद आदि मुद्दे पर वह कुछ बेहतर नहीं कर पाई। बेरोजगारी का ग्राफ बड़ा है मंहगाई आसमान छू रही है, अर्थव्यवस्था की कमर टूट चुकी है। जिस पर पर्दा डालने के लिये नये नये हथकंडों को उछालकर जनता का ध्यान बांटती है। भाजपा खुद 76 वर्षीय यदुरप्पा को कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाती है पर वह सवाल कांग्रेस में उठाती है कि वहां युवाओं को आगे आने का मौका नहीं दिया जा रहा है।
बहरहाल पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन के पश्चात फिर कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर सवाल खड़े किये जा रहा है। जिस तरह की परिस्थितियां निर्मित है उसमें जी-23 के नेता जो मुद्दे उठाकर रहे है उसको उपेक्षित करने की जगह संपूर्ण घटनाक्रम को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखते हुए कांग्रेस को मौजूदा राजनीति की नब्ज को समझने और पकड़ने की जरूरत है। जो संगठन या पार्टी समय क अनुकुल नहीं बदल पाती उसको हमेशा निराशा हाथ लगती है। इस बात को कहने में कोई संकोच नहीं है कि राहुल गांधी हो या प्रियंका गांधी इनके जो भी राजनीतिक सलाहकार है, इनके पास व्यवहारिक राजनीतिक सोच की कमी है इसके पश्चात दोनों भाई बहन मेहनत करने के पश्चात भी पार्टी को बेहतर परिणाम देने में विफल है। कांग्रेस पार्टी राजनीति के जिस चौराहे पर खड़ी है वहां उसकी मजबूरी है कि वह 2024 के लिये राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन करें। ताकि उसे राजनीतिक मजबूती मिल सके। क्षेत्रीय दलों का उदय ने कांग्रेस के वोट बैंक को प्रभावित किया है। जिसके कारण आज कांग्रेस को हर राज्य में अलग अलग तरह से राजनीतिक संघर्ष से गुजरना पड़ रहा है। कांग्रेस तभी मजबूत हो पायेगी जब वह अपना संगठनात्मक ढांचे को नये सिरे से मजबूत नहीं करती। पार्टी के पास जमीन पर काम करने वाले कार्यकार्ताओं एवं नेताओं की कमी है। जिसके कारण उसके जो योजनायें है, विचारधारा है आम जनमानस तक नहीं पहुंच पाती। देश के चारों कोने में निरंतर पराजय के पश्चात भी कांग्रेस का कार्यकर्ता आपको अंतिम छोर में खड़ा मिलेगा।
(लेखक- रहीम खान )
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कांग्रेस ईमानदार आत्ममंथन से दूर