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हार्ट अटैक के बाद सावधानी बरतना है जरुरी - डॉक्टर के टच में रहें और ट्रीटमेंट बंद न करें

हार्ट अटैक के बाद सावधानी बरतना है जरुरी  - डॉक्टर के टच में रहें और ट्रीटमेंट बंद न करें

हार्ट अटैक के बाद शरीर में काफी बदलाव आते हैं, और ये बदलाव ऐसे हैं जो आपकी चिंता और बढ़ा सकते हैं। हार्ट अटैक के बाद पहले 28 दिन यानी पहला 1 महीना बेहद ज़रूरी होता है। जिन लोगों को हार्ट अटैक होता है, ठीक होने के बाद उनमें हार्ट फेल और दिल संबंधी अन्य बीमारियों का रिस्क बढ़ जाता है। इसलिए ज़रूरी है हमेशा डॉक्टर के टच में रहें और डिस्चार्ज होने के बाद भी ट्रीटमेंट बंद न हो। हार्ट अटैक से उबरने के बाद सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि आप यह समझें कि हार्ट अटैक हुआ क्यों? इसके लिए ज़रूरी है कि आप थोड़ा-सा पीछे मुड़ें और उन वजहों और चीज़ों पर गौर करें, जिनकी वजह से दिल की बीमारी हुई। यह बात उन लोगों के मामले में थोड़ी ज़्यादा गंभीर हो जाती है, जो कम उम्र में ही हार्ट अटैक का शिकार हो जाते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि डॉक्टर से विस्तृत चर्चा की जाए और सलाह ली जाए कि कैसे स्ट्रेस के बिना लाइफ जी जाए।
हार्ट अटैक से उबरने के बाद भले ही एक नॉर्मल लाइफ जीने की कोशिश की जाए, लेकिन यह भी सच है कि मानसिक तौर पर चिंता काफी बढ़ जाती है। दिमाग में बार-बार यही चलता रहता है कि आखिर हार्ट अटैक हुआ क्यों? कहीं यह फिर से तो नहीं होगा? आप जितने ऐक्टिव होकर कोई भी फिजिकल वर्क कर पाते थे, हार्ट अटैक के बाद ऐसा नहीं कर सकते। कोई भी भारी काम या फिर एक्सर्साइज़ करने से पहले आपको सौ दफा सोचना पड़ेगा क्योंकि हार्ट अटैक के बाद आप भले ही एक नॉर्मल लाइफ जीने लगें, लेकिन आपके हार्ट यानी दिल को नॉर्मल होने में वक्त लगेगा। हार्ट अटैक के बाद स्ट्रेस और टेंशन बढ़ जाती है, जिसका सीधा असर सेक्शुअल ड्राइव और लिबिडो पर फर्क पड़ता है। कई लोगों को डर लगता है कि कहीं सेक्स की वजह से उन्हें दूसरा हार्ट अटैक ही न आ जाए, लेकिन जब बॉडी और हार्ट को पूरी तरह से रेस्ट मिल जाएगा, तो सेक्स संबंधी यह परेशानी दूर हो सकती है। जहां पहले छाती में हल्का-सा दर्द होने पर भी आप उसे नज़रअंदाज़ कर देते थे, वहीं हार्ट अटैक के बाद ऐसा नहीं हो पाता। ज़रा-सा भी दर्द छाती में हुआ तो आपकी नींद उड़ जाएगी और लगेगा कि कहीं यह हार्ट अटैक का लक्षण तो नहीं? हार्ट अटैक के बाद सामान्य जीवन में जो सबसे बड़ा बदलाव आता है, वह है दवाई। आपका रूटीन पूरी तरह से बदल जाता है। खान-पान और लाइफस्टाइल के साथ आपको अपनी दवाई और उसके डोज़ का भी ध्यान रखना पड़ता है। 

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