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चिकित्सा शिक्षा को सस्ती एवं व्यवहारिक बनाये सरकार  -यूक्रेन जैसे देशों से सबक ले भारत सरकार

 चिकित्सा शिक्षा को सस्ती एवं व्यवहारिक बनाये सरकार  -यूक्रेन जैसे देशों से सबक ले भारत सरकार

यूक्रेन की लड़ाई ने भारत के मेडिकल एजुकेशन सिस्टम को सारी दुनिया के सामने बेनकाब कर दिया है। यूक्रेन से लौटते हजारों मेडिकल छात्रों ने भारत की मेडिकल शिक्षा की हकीकत बयान कर दी है। अकेले यूक्रेन की बात नहीं है बल्कि दुनिया के अनेक देशों में भारतीय छात्र मेडिकल शिक्षा लेने जाते हैं जिनकी संख्या लाखों में है। जब चीन में कोरोना फैला था। उस समय भी चीन के वुहान शहर सहित तमाम शहरों से बड़ी संख्या में मेडिकल छात्र भारत लौटे थे। रूस, कैरेबियन देश, ऑस्ट्रेलिया अमेरिका और ब्रिटेन सहित कई देशों में भारत के छात्र मेडिकल शिक्षा ग्रहण करने जाते हैं। इन देशों में ना केवल इन छात्रों को मेडिकल शिक्षा भारत की अपेक्षा सस्ती दर पर मिलती है बल्कि सीटों की कमी भी नहीं रहती। आखिर क्या कारण है कि भारत में मेडिकल शिक्षा के प्रति छात्रों का रुझान होने तथा देश में डाक्टरों की भारी कमी के बावजूद भारत सरकार छात्रों को शिक्षित नहीं कर पा रही है। 
भारत में प्रतिवर्ष लगभग 10 लाख छात्र डॉक्टर बनने के लिए मेडिकल एग्जामिनेशन नीट परीक्षा में बैठते हैं। इनमें से बमुश्किल 70 हजार छात्रों को एडमिशन मिल पाता है इसमें भी एनआरआई कोटा शामिल है। मेडिकल कालेज शुरु करने की भारी लागत विशेषज्ञ डाक्टरों की कमी तथा महंगी पढ़ाई, सीटों की कम संख्या और छात्रों की अधिकता से चिकित्सा शिक्षा मेडिकल क्षेत्र में भारी भ्रष्टाचार एवं कुप्रबंधन का बड़ा  का कारण है।

भारत में कैसे बनता है मेडिकल कॉलेज
भारत में मेडिकल कॉलेज की लागत 400 करोड़ रुपए है। इतनी राशि का निवेश करना और तथा पढ़ाई का खर्च निकालना आसान नहीं है। मेडिकल एजुकेशन को लेकर सरकार के नियम और शर्तें बहुत सख्त हैं। सीटों के आवंटन से लेकर हर प्रक्रिया में अनेक बाधाएं हैं। सरकार ने मेडिकल ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की फीस भी तय कर दी है। 400 करोड़ खर्च करने के बाद भी प्रतिवर्ष करोणों के घाटे में कालेज और अस्पताल चलाने का जोखिम कोई नहीं उठाना चाहता। यही कारण है कि मेडिकल कॉलेज खोलने के प्रति निवेशकों की रुचि नहीं है। इसके विपरीत विदेशों में मेडिकल कॉलेज की लागत पढ़ाई और अस्पताल संचालन के नियम काफी सस्ता है। 
कैरेबियन देशों में तो 50 हजार स्क्वायर फीट जमीन में मेडिकल कॉलेज खुल जाता है। जहां पर अमेरिका जैसे देशों के लिए योग्य चिकित्सक तैयार किए जाते हैं। वहां पर ऐसे 35 कॉलेज अमेरिका के लिए डॉक्टर तैयार कर रहे हैं। भारत में 200 छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए 140 फैकल्टी की आवश्यकता होती है। जबकि इन देशों में भारत की तुलना में मात्र 20 फीसदी फैकल्टी पढ़ाने के लिए जरुरी होती है। दुनिया के साथ भारत ने कदमताल करना नहीं सीखा। इसी कारण भारत में मेडिकल एजुकेशन एवं डाक्टर विलासिता और मोटी कमाई के प्रतीक बन गए हैं। जिसकी जेब में भरपूर पैसा हो वही डॉक्टर बन सकता है। आज के दौर में गरीब लोगों के मेधावी बच्चे डॉक्टर बनने के बारे में सोच भी नहीं सकते। भारत में अच्छे डॉक्टर गरीबी की पृष्ठभूमि से आए हैं। बेहतर आर्थिक पृष्ठभूमि वाले मेडिकल छात्र चिकित्सा व्यावसाय को पैसा कमाने वाले कोर्स  समझते हैं। वह विशेष पाठ्यक्रमों में एडमिशन लेते हैं जिनमें ज्यादा पैसा है। प्रश्न यह है कि मेडिकल स्पेशलिस्ट बनने के लिए 3 से 5 करोड़ रुपए खर्च करने की आवश्यकता क्या है। दुनिया के अनेक देशों में मेडिकल एजुकेशन बिल्कुल मुफ्त है लेकिन भारत में यह बहुत महंगी है। यही कारण है कि भारत में प्रशिक्षित डॉक्टरों का भारी अभाव है।

भारत में होती हैं सबसे ज्यादा मौतें
भारत में जच्चा-बच्चा मृत्यु दर अन्य गरीब देशों के मुकाबले ज्यादा है। हर 12 मिनट में एक मां बच्चे को जन्म देते समय भारत में मर जाती है। प्रतिवर्ष 3 लाख बच्चे जन्म के चंद घंटों में दम तोड़ देते हैं। 12 लाख बच्चे अपना पहला जन्म दिवस भी नहीं बना पाते। भारत में 15 से 16% महिलाओं को सिजेरियन की जरूरत पड़ती है। इसका अर्थ है कि देश में प्रतिवर्ष 52 लाख महिलाओं की आपरेशन से डिलिवरी जरूरी है। इसके लिए हमें दो 2 लाख महिला चिकित्सा विशेषज्ञों की जरूरत है। लेकिन देश में मात्र 50 हजार महिला चिकत्सक ( गाइनेकोलॉजिस्ट) हैं। उनमें से आधे आपात स्थिति में काम नहीं करते, क्योंकि वह रात में डियुटी नहीं करना चाहते। विशेष बात यह है कि अधिकांश महिला चिकित्सक शहरों में रहती हैं। जबकि 60% बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों में पैदा होते हैं। हमें दो लाख एनएसथेटिस्ट चिकित्सकों की जरूरत है, लेकिन देश में 50 हजार से भी कम उपलब्ध हैं। देश को दो लाख शिशु रोग विशेषज्ञों की आवश्यकता है, लेकिन देश में मात्र 50 हजार शिशु रोग विशेषज्ञ हैं। देश में डेढ़ लाख रेडियोलॉजिस्ट की आवश्यकता है जबकि देश में कुल 10500 रेडियोलॉजिस्ट हैं। ऐसी स्थिति में जच्चा बच्चा की मृत्यु दर कैसे कम की जा सकती है।

मेडिकल कॉलेज खोलना आसान हो
वर्तमान स्थिति में देश में मेडिकल शिक्षा के लिए बजट बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है। सरकार और एनएमसी को  मेडिकल कॉलेज खोलने की संरचना एवं शर्तों में ढील देने की आवश्यकता है। भारी भरकम अधोसंरचना से लेकर तमाम तरह की शर्तें नियम-कानून मेडिकल शिक्षा की दिशा में सबसे बड़ी बाधा और भ्रष्टाचार का कारण बने हुए है। इन बाधाओं एवं भष्ट्राचार को खत्म करने की तुरंत आवश्यकता है। अनावश्यक फैकल्टी की संख्या बढ़ाने बड़ी-बड़ी इमारतों और अन्य सुविधाओं की जगह सीट की संख्या बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए 300 बिस्तर का अस्पताल चाहिए। तमाम तरह के डिपार्टमेंट चाहिए। डिपार्टमेंट के लिए विशेषज्ञ चाहिए। जो भारत में उपलब्ध नहीं है। यह सब आसानी से संभव नहीं हो पाता। इसी कारण भारत मेडिकल शिक्षा में पिछड़ रहा है। विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है। विदेश में पढ़ने वाले छात्र भारतीय धन को विदेशों में खर्च करते है। छोटे-छोटे देशों से मेडीकल चिकित्सा लेने के बाद अमेरिका और यूरोप के देश उन्हें मान्यता देते है। भारत में उन्हें आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता है। भारत में मेडीकल छात्रों के लिए सीटे बढ़ाने, अधोसंरचना में सुधार करने, एमबीबीएस, एमएस, एमडी एवं अन्य विशेषज्ञ तैयार करने के लिए पाठ्यक्रम एवं व्यवहारिक ज्ञान में बदलाव नहीं करेगा। स्थिति और बिगड़ती जायेगी।  सरकार को मेडिकल शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए पाठृयक्रम एवं संरचना में बदलाव के लिए आवश्यक सुधार करने, इंसपेक्टर राज और नियमों के मकड़जाल को खत्म करने की आवश्यकता है। कोरोना काल की महामारी के बाद तत्काल सरकार को इस संबंध में बदलाव करना चाहिए।
(लेखक-सनत कुमार जैन)

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