नई दिल्ली । उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी गठबंधन की हार के बाद से ही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) प्रमुख ओम प्रकाश राजभर के अगले कदम को लेकर अटकलें लग रही हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ लड़कर मंत्री बने राजभर को इस बार सपा की जीत से 'अच्छे दिनों' की उम्मीद थी। लेकिन चुनावी नतीजों से मिली निराशा के बाद से माना जा रहा है कि राजभर एक बार फिर पलटी मारकर भाजपा सरकार में शामिल हो सकते हैं। पिछले दिनों दिल्ली में बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात को लेकर भी खबर आई थी। राजभर ने मुलाकात की खबरों को भले ही खारिज कर दिया, लेकिन जिस तरह होली के पहले से ही वह चुप्पी साधे हुए हैं, उससे एक बार फिर सवाल उठने लगा है कि क्या यह रंग बदलने के संकेत हैं? पिछले करीब 9 दिनों से ओपी राजभर सुर्खियों से पूरी तरह गायब हैं। वह ना सिर्फ मीडिया से दूर हैं, बल्कि सोशल मीडिया पर भी कुछ बधाई संदेशों और कार्यकर्ताओं से मुलाकात की तस्वीरों के अलावा वह ट्विटर-फेसबुक पर भी चुप्पी साधे हुए हैं। दरअसल, सवालों को बल इसलिए भी मिला है क्योंकि राजभर इस तरह चुप्पी साधे हुए राजनीति करने को लेकर नहीं जाने जाते हैं। वह बेहद मुखर रहने वाले नेता हैं और विपक्ष पर लगातार निशाना साधने में आगे रहते हैं। लेकिन जिस तरह पिछले कुछ दिनों में उन्होंने योगी सरकार और भाजपा को लेकर एक भी शब्द नहीं कहा है, उसके बाद सवाल उठने लगा है कि क्या चुनाव में तीखी बयानबाजी करने वाले राजभर अब माहौल को साजगार बनाने में जुट गए हैं विधानसभा चुनाव में 6 सीटें जीतने वाले राजभर ने पूर्वांचल की कई सीटों पर भाजपा को नुकसान पहुंचाया है। माना जा रहा है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी उन्हें अपने पाले में लाकर इस नुकसान की भरपाई सुनिश्चित कर लेना चाहती है। तमाम कड़वाहट के बावजूद बीजेपी ने राजभर के लिए दरवाजे खुले रखे हैं। यही वजह है कि राजभर के अच्छे दोस्त और भाजपा के उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने खुलकर कहा था कि राजभर को बीजेपी के साथ आ जाना चाहिए, बीजेपी ही उनके समाज का भला कर सकती है।
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ओपी राजभर की खामोशी खड़े कर रही सवाल