नई दिल्ली । नेपाल के पीएम शेर बहादुर देउबा पिछले सप्ताह जब भारत आए थे तो उन्होंने अनौपचारिक बातचीत में बताया था कि कैसे उन्होंने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से कह दिया कि हमें लोन की नहीं अनुदान की जरूरत है। देउबा ने कहा था कि हमें इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए चीन से कर्ज की जरूरत नहीं है। तथ्य यह है कि चीन की तमाम कोशिशों के बाद भी बेल्ट ऐंड रोड प्रोजेक्ट के तहत नेपाल ने कोई भी करार नहीं किया और काठमांडू से वांग यी खाली हाथ ही लौट आए। नेपाल के इस फैसले को दक्षिण एशिया के अन्य देशों के मुकाबले समझदारी भरा ही कहा जाएगा। पाकिस्तान और श्रीलंका में आज जो अस्थिरता और आर्थिक संकट के हालात हैं। उसकी एक वजह चीन को भी माना जा रहा है। पाकिस्तान के ऊपर जो कुल कर्ज है, उसमें 10 फीसदी हिस्सा चीन का ही है। आज इमरान खान चीन के बेहद करीबी हैं और सेना अमेरिका के सुर में बात करती दिख रही है। नतीजा यह है कि देश में राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति बन गई है। श्रीलंका की स्थिति तो बेहद विपरीत है, जहां उसके पास पेट्रोल और डीजल खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा नहीं है और बत्ती गुल है। महिंदा राजपक्षे की सरकार गहरे संकट के दौर से गुजर रही है। कहा जा रहा है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट के लिए उन्होंने चीन से ऊंची ब्याज दर पर जो लोन लिए थे, उनके चलते भी देश की कमर टूट गई है। फिलहाल देश भर में लॉकडाउन की स्थिति है ताकि लोगों को आंदोलन करने से रोका जा सके, जो सरकार के खिलाफ गुस्से में हैं।
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श्रीलंका और पाकिस्तान से कैसे समझदार निकला नेपाल