लंदन । एक सवाल हमेशा से बना रहा है कि शादी के बाद महिला को अपना सरनेम बदलने की जरूरत क्यों है? महिलाओं के आजाद होने के पैमाने क्या हैं? इसके जवाब में ही एक मानक शादी के बाद सरनेम बदलने या ना बदलने की आजादी को भी गिना जाता है। एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटेन में शादी के बाद महिलाओं में अपना सरनेम नहीं हटाने का चलन बढ़ रहा है, ताकि उनकी पहचान बनी रहे। खास बात ये है कि महामारी के दौरान हर साल इस तरह के आवेदनों में 30% का उछाल देखा गया है।
आवेदनों में ज्यादातर महिलाएं अपने सरनेम को मिडिल नाम की तरह इस्तेमाल करने की मंजूरी मांग रही हैं। वहीं, पति के सरनेम को उसके बाद लगा रही हैं। अभी कुछ सालों से भारत समेत दुनिया के कई देशों में आमतौर पर पति के नाम के साथ अपना सरनेम लगाने का भी चलन बढ़ा है। खबरों की मानें तो बीते साल ऐसे आवेदनों में खासा उछाल आया है, जो एक दशक में सबसे ज्यादा है। विशेषज्ञ महिलाओं द्वारा अपना सरनेम बनाए रखने के पीछे की वजह लॉकडाउन में महिलाओं को ज्यादा खाली समय मिला। उस समय उन्होंने अपने नए नाम के लिए डॉक्यूमेंट बनवाना शुरू किया। एक और वजह है- महिलाओं में बढ़ती आत्मनिर्भरता और समर्पण की जगह साझेदारी भावना। सेम जेंडर पार्टनर्स ने भी अलग होने के बावजूद मिडिल नेम बनाए रखने के आवेदन किए हैं। उन्होंने अलग-अलग शहरों में रहते हुए भी एक-दूसरे से जुड़ाव बनाए रखने को इसकी वजह बताई है। 10 सालों में ऐसे मामलों की संख्या में बढ़ोतरी तेजी से हुई है। महिलाएं काम को तवज्जो दे रही हैं और कई जगह तो पति से ज्यादा सैलरी पा रही हैं। ऐसे में, शादी के बाद अपना बर्थ नेम हटाकर पति का सरनेम लगाएं या नहीं, इसे लेकर वो खुद फैसला कर रही हैं।
ताजा उदाहरण अमेरिकन एक्ट्रेस निकोला पेलत्ज का है। उन्होंने इसी महीने ब्रुकलिन बेकहम से शादी की। अपना सरनेम रखते हुए अपने मूल नाम (निकोला पेलत्ज) को मिडिल नेम बना लिया। अब उनका नाम निकोला पेलत्ज बेकहम हो गया है। मालूम हो कि आज की दुनिया में महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं है, वे अपनी पहचान खुद बना रही हैं। आज की महिला खुद अपने सारे फैसले करने के लिए स्वतंत्र है। दुनिया के लगभग सभी देशों में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया जाता है।
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ब्रिटेन में शादी के बाद भी महिलाएं नहीं हटा रही सरनेम -10 सालों में ऐसे मामलों की संख्या में तेजी से हुई बढ़ोतरी