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दवा कंपनियों के लिए घाटे का सौदा बनीं कोरोना काल में मुंहमांगे दामों पर बिक रही दवाएं 

दवा कंपनियों के लिए घाटे का सौदा बनीं कोरोना काल में मुंहमांगे दामों पर बिक रही दवाएं 

नई दिल्ली । कोरोना संक्रमण के दौर में कुछ दवाएं थीं, जिन्हें लोग मुंहमांगे दामों पर खरीद रहे थे। उनके बारे में यह धारणा बन चुकी थी कि कोरोना से गंभीर संक्रमित मरीज को सिर्फ यही दवाएं मौत के मुंह में जाने से बचा सकती हैं। इस धारणा को दवा कंपनियों ने भुनाया भी और जमकर अपनी तिजोरियां भरीं। अब इन दवाओं की वजह से फार्मा कंपनियों को लगभग 1,200 करोड़ रुपए से ज्यादा का घाटा दे रही हैं।
दवा कंपनियों के पास इस वक्त उन दवाओं और उनके कच्चे माल का काफी भंडार इकट्‌ठा हो गया है, जो कोरोना के दौर में बहुतायत इस्तेमाल हुई थीं। जैसे- फैविपिराविर, मोलनुपिराविर, रेमडेसिविर, टोसिलिजुमैब आदि। हालांकि अब तक यह सामने नहीं आया है कि कितनी मात्रा में दवाएं दवा कंपनियों के पास बिना बिकी पड़ी हैं। या फिर उनका कच्चा माल कितनी मात्रा में इकट्‌ठा हो रखा है। लेकिन दवा उद्योग के विशेषज्ञ बताते हैं कि यह सब 1,200 करोड़ रुपए से ज्यादा का ही होगा। कम नहीं हो सकता। बताया जाता है कि हैदराबाद की हेटरो फार्मा के पास मोलनुपिराविर का सबसे अधिक स्टॉक बचा हुआ है। इसके बाद नैटको, मैनकाइंड फार्मा और सन फार्मा के पास यही दवा काफी मात्रा में बिना बिकी मौजूद है। 
इसी तरह फैविपिराविर का स्टॉक ग्लेनमार्क फार्मा के पास पड़ा है। जबकि रेमडेसिविर का स्टॉक जाइडस, सिप्ला, हेटरो, डॉक्टर रेड्डीज, माइलन, जुबिलैंट आदि कंपनियों के पास मौजूद है। जानकार बताते हैं कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान इन दवाओं की मांग बेतहाशा बढ़ी थी। इन दवाओं की कम-उपलब्धता के कारण हजारों लोग परेशान हुए थे। इसीलिए जब तीसरी लहर आई तो दवा कंपनियों ने बड़े पैमाने पर न सिर्फ इन दवाओं का उत्पादन किया बल्कि इनका कच्चा माल भी मंगवाकर अपने पास रख लिया। 
तीसरी लहर में इन दवाओं की ज्यादा जरूरत ही नहीं पड़ी। कारण कि जिस ओमिक्रॉन की वजह से तीसरी लहर आई, उसके संक्रमण में सामान्य इलाज से ही अधिकांश लोगों का काम चल गया। कई लोगों को अस्पताल में भर्ती करने की नौबत भी नहीं आई। इससे कंपनियों के अनुमान गड़बड़ा गए। सिर्फ विशिष्ट दवाओं का ही नहीं, दवा कंपनियों के पास विटामिन-सी, जिंकोविट आदि का भी भारी स्टॉक अटका हुआ है। इसलिए कि मुख्य दवाओं के साथ कोरोना संक्रमण के दौरान ये सप्लीमेंट भी मरीजों को दिए जा रहे थे। लेकिन अब इनकी मांग कम हो गई है। हालांकि इन दवाओं का इस्तेमाल चूंकि होता रहता है, इसलिए उम्मीद है कि मौजूदा स्टॉक निकल जाएगा, लेकिन उसे निकलने में 6 से 8 महीने लग सकते हैं।
 

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