नई दिल्ली । देश में बिजली की किल्लत के पीछे कोयला आपूर्ति की कमी बढ़ा कारण है ऐसे में अलग-अलग हिस्सों में स्थित बिजली संयंत्रों तक कोयले को पहुंचाने के लिए रेलवे ने पिछले चार महीनों में 150 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं। रेलवे अधिकारियों के मुताबिक यह खर्च 2000 से अधिक क्षतिग्रस्त वैगनों के मरम्मत पर किया गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह खर्च ऐसे समय पर किया गया, जब देश बिजली की भारी कमी का सामना कर रहा है। बीते 28 अप्रैल को भारत को 192.1 मिलियन यूनिट बिजली की कमी का सामना करना पड़ा, क्योंकि पीक डिमांड 204.6 गीगावॉट के नए रिकॉर्ड तक पहुंच गई थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले गुरुवार को देश के अलग-अलग बिजली संयंत्रों में 8 दिन से भी कम का कोयला भंडार था, जबकि औसतन पावर प्लांट में 24 दिनों का स्टॉक होना चाहिए।
आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी में तकरीबन 9,982 ऐसे वैगनों को क्षतिग्रस्त के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, जिनकी संख्या 2 मई तक घटकर 7,803 हो गई। कोयले की मांग की पूर्ति के लिए रेलवे ने समय पर 2,179 वैगनों की मरम्मत की। रेल मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार, त्येक वैगन की मरम्मत के लिए रेलवे को लगभग 5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये का खर्च आया। वैगनों को हो रहा नुकसान मंत्रालय के लिए चिंता का विषय बन गया है क्योंकि बिजली संयंत्रों द्वारा कोयले को उतारने में लगे निजी ठेकेदारों ने मैनुअल अनलोडिंग की जगह पर जेसीबी से अनलोडिंग शुरू कर दी है।
अधिकारी ने आगे बताया कि इस क्रम में जेसीबी वैगनों के अंदरूनी हिस्से से टकराते हैं जिससे वैगन को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाता है। उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि पहले अनलोडिंग मैनुअल तौर पर की जाती थी। अब जेसीबी के माध्यम से की जा रही है, जिसके परिणामस्वरूप क्षतिग्रस्त वैगनों की संख्या में वृद्धि हुई है। आंकड़ों के अनुसार, 1 जनवरी को 9,882 वैगन क्षतिग्रस्त थे, जबकि 6 जनवरी को यह संख्या बढ़कर 10,687 हो गई। इसके बाद रेलवे ने मरम्मत का काम शुरू किया, जिसके फलस्वरुप क्षतिग्रस्त वैगनों की संख्या में कमी आई है। बीते 2 मई को तकरीबन 7,803 क्षतिग्रस्त वैगन थे।
अधिकारियों के मुताबिक, कोयला क्षेत्रों में स्टॉक कम होने के कारण कोयला लदान के लिए इंतजार कर रहे वैगनों के टर्नओवर का समय सात दिनों से बढ़कर लगभग 15-20 दिन हो गया है। रेलवे ने रेक के संचालन की अवधि में भी 2,500 किमी की वृद्धि की है, जिससे उन्हें अधिक चलने का समय मिल गया है।
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बिजली संयंत्रों तक कोयले को पहुंचाने के लिए रेलवे ने खर्च की 150 करोड़ रुपये की राशि