नई दिल्ली । नए अध्ययन में पाया गया है, कि गंभीर कोरोना संक्रमण से ठीक होने वाले मरीजों को बौद्धिक अक्षमता की समस्या का सामना करना पड़ा रहा है। इस बीमारी के शिकार आमतौर पर 50 से 70 वर्ष की आयु के बीच के लोग होते हैं। वैज्ञानिकों की टीम का कहना है कि यह समस्या 10 आईक्यू प्वाइंट खोने के बराबर है। वैज्ञानिकों के निष्कर्ष बताते हैं कि कोरोना संक्रमण की बीमारी के छह महीने से अधिक समय बाद भी कोरोना संक्रमण के प्रभावों का पता लगाया जा सकता है, कि बौद्धिक क्षमता धीरे-धीरे अच्छी हो रही है या नहीं। रिपोर्ट के मुताबिक साथ ही यह समस्या उन लोगों के भीतर भी शुरू हो सकती है, जिन्हें कोरोना के हल्के लक्षण थे।
रिपोर्ट से इसके प्रमाण बढ़ रहे हैं कि कोरोना स्थायी बौद्धिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है। कोरोना से ठीक होने वाले रोगियों में संक्रमण के महीनों बाद भी लक्षण दिखाई देते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि वे जिन लक्षणों की रिपोर्ट करते हैं उनमें थकान, ‘ब्रेन फॉग’, शब्दों को याद करने में समस्या, नींद की गड़बड़ी, चिंता और यहां तक कि पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर भी शामिल हैं। पिछले एक अध्ययन में पाया गया कि सात में से एक व्यक्ति में इसतरह के लक्षण पाए गए, जिसमें कोविड पॉजिटिव होने के 12 सप्ताह बाद बौद्धिक तौर पर कठिनाई हो रही थी। वैज्ञानिकों की टीम ने पाया कि कोविड संक्रमण से ठीक हुए लोग कम सही थे और उनकी प्रतिक्रिया भी बहुत ही धीमी थी और ये कमी तब भी पता लगाने योग्य थी जब मरीज को 6 महीने से ट्रेस किया जा रहा था।
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कोरोना के मरीजों को बौद्धिक अक्षमता की समस्या