नई दिल्ली। पिछले दिनों प्रशांत किशोर ने जब कांग्रेस के साथ न जाने का ऐलान किया था तो यह कह गया था कि पार्टी बदलावों के लिए तैयार नहीं है, इसीलिए बात नहीं बनी है। खुद प्रशांत किशोर ने भी ट्वीट कर कहा था कि कांग्रेस को मुझसे ज्यादा सशक्त नेतृत्व और सामूहिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। भले ही कांग्रेस ने बदलाव को लेकर ज्यादा चर्चा नहीं की है, लेकिन बीते कुछ दिनों में लिए फैसलों और चिंतन शिविर की तैयारी ने साफ किया है कि अंदर ही अंदर लीडरशिप पार्टी की ओवरहॉलिंग करने में जुटी है। एक तरफ चिंतन शिविर के बाद राहुल गांधी और सोनिया गांधी बांसवाड़ा के बाणेश्वर धाम में 5 लाख लोगों की जनसभा को संबोधित करने वाले हैं। यहां 5 लाख रैली में हिस्सा ले सकते हैं। यही नहीं शिव के धाम में बने कुछ नए प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन भी दोनों नेता कर सकते हैं। माना जा रहा है कि बाणेश्वर धाम की यात्रा से कांग्रेस मजबूती के साथ यह संकेत देना चाहती है कि वह हिंदुओं के हितों और भावानाओं का भी ख्याल रखती है। इसके जरिए वह भाजपा की ओर से मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोपों की भी काट करना चाहती है। बता दें कि रमजान के महीने के दौरान भी वह इफ्तार पार्टियों से दूर ही नजर आई थी। इसके पीछे भी उसकी यही कोशिश माननी जा रही है। यही नहीं सबसे बड़ी कोशिश सोशल इंजीनियरिंग की है। कांग्रेस के आगे सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि वह किसी वर्ग को लेकर यह नहीं कह सकती कि उसका एकमुश्त वोट उसे मिलेगा ही। ऐसी स्थिति से बाहर निकलने के लिए कांग्रेस ने पार्टी के भीतर ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग के नेताओं को आरक्षण देने पर मंथन शुरू किया है। इस संबंध में उदयपुर के चिंतन शिविर में प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। ऐसा होता है तो भारतीय राजनीति में यह एक नया प्रयोग होगा। महिलाओं को लेकर पहले ही कांग्रेस यूपी में प्रयोग कर चुकी है और चुनाव में 40 फीसदी टिकट उसने महिलाओं को देकर चर्चा बटोरी थी।
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सोशल इंजीनियरिंग, लीडरशिप चेंज और हिंदुत्व प्रशांत किशोर के बिना ही बदलावों में जुटी कांग्रेस