जम्मू । जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों के परिसीमन की सिफारिश पर विपक्षी दलों के हर आरोप का जवाब आयोग ने दिया है। जम्मू की सीटें बढ़ाने, पंडितों को नामित सदस्य के तौर पर प्रतिनिधित्व देने और जनजाति आरक्षण को लेकर परिसीमन आयोग ने अपनी राय जाहिर की है। परिसीमन आयोग ने जम्मू की सीटें बढ़ाए जाने को लेकर कहा कि हमने पूरे जम्मू-कश्मीर को एक ही क्षेत्र मानते हुए यह प्रक्रिया पूरी की है। आयोग के सदस्यों ने कहा कि हमने दोनों को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश नहीं माना है बल्कि दोनों को एक ही इकाई के तौर पर देखते हुए काम किया है। यही नहीं विधानसभाओं के परिसीमन को लेकर कनेक्टिविटी का ध्यान भी रखा गया है कि कौन सा क्षेत्र कहां पड़ता है और किससे नजदीकी है। परिसीमन आयोग के सदस्य और मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने कहा, 'आप जानते हैं कि कश्मीर में 5 लोकसभा सीटें हैं और 90 विधानसभा सीटें होंगी। इस तरह से हर लोकसभा सीट के तहत 18 विधानसभाएं आनी चाहिए, लेकिन यही आंकड़ा रखेंगे तो गलत ढंग से बंटवारा होगा। इसलिए हमने अनंतनाग, राजौरी और पुंछ को एक साथ लेते हुए काम किया है। हमने जम्मू कश्मीर को एक यूनिट समझकर काम किया है, इसे दो केंद्र शासित प्रदेश या दो राज्य की तरह से नहीं देखा है।' उन्होंने कहा कि हमने राज्य के कई प्रतिनिधिमंडलों से बात की और उनके सुझावों को इस रिपोर्ट में शामिल किया गया है। जम्मू में 6 सीटें जोड़े जाने की सिफारिश पर सुशील चंद्रा ने कहा, 'इसके लिए फैक्टर्स का ध्यान रखा गया है। जैसे प्रशासनिक यूनिट, रिमोट इलाके, संचार के माध्यम और जनसुविधाएं। हमने किश्तवाड़, डोडा जैसे दुर्गम इलाकों के लिए सीटें बढ़ाने का फैसला लिया है, जहां पहुंचता अन्य इलाकों के मुकाबले थोड़ा कठिन है। अकसर बर्फबारी के बाद इन क्षेत्रों के कई इलाकों में पहुंचना आसान होता है। इसके अलावा सांबा भी सीमा से लगता हुआ कठिन क्षेत्र है।' यही नहीं चुनाव को लेकर भी उन्होंने कहा कि एक बार परिसीमन का नोटिफिकेशन जारी हो जाए, फिर उसके बाद चुनाव आयोग इलेक्शन की तैयारी कर सकता है। बता दें कि जम्मू-कश्मीर में नवंबर में चुनाव होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
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आरक्षण की क्या है वजह परिसीमन आयोग ने दिया हर जवाब