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अभूतपूर्व खाद्यान्न संकट के द्वार पर खड़ा है भारत.... - सारा गेहूं विदेश में बिक जाएगा तो भारतीय क्या खाएंगे?

अभूतपूर्व खाद्यान्न संकट के द्वार पर खड़ा है भारत.... - सारा गेहूं विदेश में बिक जाएगा तो भारतीय क्या खाएंगे?

नई ‎दिल्ली । भारत सरकार ‎जिस तरह से गेहूं एवं अन्य खाद्यानों का ‎निर्यात कर रही है, उससे फुड कारपोरेशन ऑफ इं‎डिया के गोडाउन तेजी के साथ खाली हो रहे हैं। एमएसपी से ज्यादा गेहूं के दाम होने पर व्यापारी एवं ‎निजी मं‎डियों में ‎किसानों से सीधे गेहूं की खरीद हो रही है। सरकारी मं‎डियों में बहुत कम खरीद सरकारी रेट पर होने से इस बार सरकार के गोडाउन खाली रहेंगे। उ. भारत के राज्यों में सार्वज‎‎निक ‎वितरण प्रणाली एवं मुफ्त राशन का कोटा घटा ‎दिया गया है।
ऐसी ‎स्थि‎ति में देश में खाद्यान संटक बड़ी तेजी के साथ बढ़ रहा है। महंगाई, बेरोजगारी एवं प्राकृ‎तिक आपदा से जूझ रही केन्द्र एवं राज्य सरकारें आ‎र्थिक बदहाली के दौर से गुजर रही हैं। ऐसी ‎स्थिति में आने वाले वर्षों में भारत का खाद्यान संकट ‎विकराल रुप ले सकता है। सरकार आपदा को अवसर मानकर य‎दि खाद्यान भंडार को सुर‎क्षित नहीं रखेगी तो ऐसी ‎स्थिति में भुखमरी एवं बदहाली का सामना भी आम जनता को करना पड़ सकता है।
देश से खबरें आ रही हैं कि किसानों का गेहूं के खेतों से ही बिक रहा है। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कमी है। रूस और यूक्रेन युद्ध के कारण ‎विश्व बाजार में इन दोनों देशों को गेहूं नहीं आ रहा है। इसलिए दुनिया के बाजार में भारत के गेहूं की मांग बढ़ गई है। भारत दुनिया के सर्वाधिक गेहूं उत्पादक देशों में होने के कारण यहां से गेहूं सबसे ज्यादा निर्यात हो रहा है। गेहूं निर्यात के कारण कुछ समय के लिए किसान भले ही खुश हो रहे हैं लेकिन भारत के मध्यम वर्ग और गरीबों के लिए यह बुरे दिनों की शुरुआत है।
गेहूं की कमी के कारण सरकार ने तय किया है कि इस बार सार्वज‎निक ‎वितरण प्रणाली में निशुल्क गेहूं नहीं दिया जाएगा। गेहूं की खरीद बीते 11 वर्ष में सबसे कम हुई है। इसी कारण बिहार, केरल और उत्तरप्रदेश मुफ्त के राशन में गेहूं नहीं बंटेगा। बिहार में 17 और केरल में 15 हजार मीट्रिक टन तथा उत्तरप्रदेश में 4 लाख 86 हजार मीट्रिक टन से अधिक गेहूं इस बार नहीं दिया जाएगा। इसके एवज में  इन राज्यों में नि:शुल्क चावल आवं‎टित होगा। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और पश्चिम बंगाल में भी एक लाख मैट्रिक टन से ज्यादा गेहूं कम आवं‎टित होगा।  ऐसी स्थिति में जब देश के भीतर खाद्यान्न संकट आएगा तब क्या होगा यह बड़ा सवाल है। क्योंकि सरकारों ने गेहूं की खरीद पर्याप्त नहीं की है। इस बार 21.5 बिलियन टन गेहूं ही खरीदा जाएगा इससे पहले 2010-11 में सबसे कम गेहूं  तकरीबन 22.5 बिलियन टन गेहूं खरीदा गया था।
भीषण गर्मी के बावजूद भी भारत में गेहूं के उत्पादन में कोई विशेष गिरावट नहीं है। इस साल गेहूं का उत्पादन 105 बिलियन टन हुआ है। पिछले साल 109 बिलियन टन हुआ था। सरकार एफसीआई के गोदाम में गेहूं जमा करके रखती है। उसका कुछ हिस्सा राशन की दुकानों से जरूरतमंदों को बांटा जाता है। लेकिन अब यह सिस्टम पूरी तरह ध्वस्त होने की कगार पर है।  व्यापारी महंगे दाम पर किसानों से गेहूं खरीद कर अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेच रहा है। इस प्रकार मंडी एवं एफसीआई की भूमिका खत्म हो चुकी है। अब एमएसपी का कोई महत्व नहीं रहा। भंडारण भी एक झटके में आधा हो गया है। ऐसे में सवाल यह है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने गरीबों को मुफ्त अनाज एवं सार्वज‎निक ‎वितरण प्रणाली की जो योजना चालू है उसका क्या भ‎विष्य होगा। 2007 की तरह ‎विदेशों एवं ‎निजी कंप‎नियों के मनमाने दाम पर सरकार खरीद कर पाएगी।
पीडीएस सहित अन्य कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ युद्ध जैसी परिस्थितियों के लिए सरकार की ओर से नियम बनाए गए हैं। इस नियम के मुताबिक केंद्रीय पूल में 1 अप्रैल को 74.60 लाख टन  का रिजर्व स्टॉक रहना चाहिए। सरकार को लगभग 250 लाख टन पीडीएस के लिए चाहिए और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के लिए लगभग 100 लाख टन चाहिए। जबकि जुलाई में बफर स्टॉक 275.80 लाख टन होना चाहिए। यानी कि जुलाई में सरकार के पास लगभग 575.80 लाख टन गेहूं होना चाहिए, लेकिन यदि रबी सीजन की सरकारी खरीद अगर 200 लाख टन रहती है और एक अप्रैल के स्टॉक को जोड़ दिया जाए जो कि 189.90 लाख टन था तो केंद्रीय पूल के पास लगभग 390 लाख टन गेहूं होगा। ऐसे में सरकार गरीबों तक सस्ता राशन कैसे पहुंचा पाएगी?
2006-07 में केंद्रीय पूल में पीडीएस के तहत वितरण के लिए गेहूं नहीं था। सरकार ने प्राइवेट व्यापारियों से उनकी स्टॉक की जानकारी के साथ-साथ पीडीएस वितरण के लिए गेहूं की मांग की, लेकिन प्राइवेट व्यापारी नहीं माने। आखिरकार सरकार को एमएसपी से लगभग दोगुने दाम पर 55 लाख गेहूं आयात करना पड़ा। इतना ही नहीं, प्राइवेट व्यापारियों की मनमानी के चलते बाजार में गेहूं भी काफी महंगा बिका। तब भारतीय जनता पार्टी विपक्ष में थी और उसने इस सारे प्रकरण की जांच सीबीआई से कराने की मांग की थी। 1999-2000 के बाद से लेकर अब तक केवल दो साल गेहूं का आयात किया गया। ये दो साल 2006-07 और 2007-08 था। भारत में मांग से ज्यादा गेहूं होने के बावजूद अब वही पुरानी कहानी दोहराई जा रही है? या फिर तीन कृषि कानूनों की बैक डोर एंट्री करा दी गई है। जो भी हो आने वाले दिन आम जनता के लिए चिंता का विषय है।
 

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