प्रदेश के श्योपुर जिले में कुपोषण के खात्मे के लिए हर महीने 10 करोड़ 70 लाख रुपए से ज्यादा खर्च किया जा रहा है। इस लिहाल से जिले के प्रत्येक बच्चे पर 4500 रुपए खर्च हो रहे है, इसके बावजूद कुपोषण कम होने के बजाय बढ रहा है। यहां बता दें कि श्योपुर में 22 हजार से ज्यादा कुपोषित बच्चे हैं। इतना रुपया खर्च करने के बावजूद कुपोषण घटने की बजाय बढ़ता जा रहा है। महिला एवं बाल विकास विभाग का रिकॉर्ड बता रहा है कि दिसंबर 2018 में श्योपुर जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या 22050 थी, इनमें 3410 अति कुपोषित बच्चे थे, जिनकी हालत बेहद नाजुक थी। मई-जून 2018 का रिकॉर्ड देखें तो पता चलता है कि कुपोषितों की संख्या बढ़कर 22250 से ज्यादा हो गई। यानी 190 कुपोषित बच्चे बढ़ गए हैं। इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि दिसंबर 2018 में गंभीर कुपोषितों की संख्या 3410 थी जो अब बढ़कर 3850 को पार कर चुकी है। यानी छह महीने में 440 गंभीर कुपोषित बढ़ गए हैं। बस यही कारण है कि कुपोषण बेकाबू हो चुका है और बीते एक महीने में 18-20 कुपोषितों की मौत के मामले अब तक सामने आ चुके हैं। दिसंबर 2017 से कुपोषणग्रस्त सहरिया परिवारों को 1-1 हजार रुपए नकद दिए जा रहे हैं।
जिले तक 34543 आदिवासी परिवारों को हर महीने 03 करोड़ 45 लाख 43 हजार रुपए बंट रहा है। पूरक पोषण आहार पर हर महीने डेढ़ करोड़ और आंगनबाड़ी पर खाना व नाश्ते के लिए एक महीने में औसतन 87 लाख 50 हजार रुपए खर्च हो रहे हैं। कुपोषण के खात्मे के लिए कुछ नए नवाचार करने के लिए सरकार एक करोड़ रुपए अलग से श्योपुर जिले को देती है। कुपोषण को रोकने के लिए तैनात किए गए आउटसोर्स कर्मचारी, आंगनबाड़ी सहायिका, कार्यकर्ता, सुपरवाइजर, सीडीपीओ से लेकर डीपीओ के वेतन पर सरकार हर महीने तकरीबन 32 लाख रुपए बांटे जा रहे हैं। इस बारे में महिला एवं बाल विकास मंत्री इमरती देवी का कहना है कि कुपोषण के खात्मे के लिए सरकार पूरे प्रयास कर रही है, लेकिन मैंने खुद देखा है कि कई आदिवासी महिलाएं बच्चों को एनआरसी में लाने को तैयार नहीं। पैसा खर्च करके हम सुविधाएं दे सकते हैं, लेकिन आदिवासी समुदाय को इस समस्या के लिए खुद खड़ा होना पड़ेगा। कुपोषण केवल सहरिया समुदाय के बीच है, इन्हें जागरूक करने के लिए हम कदम उठाएंगे।
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एक बच्चे पर 4500 खर्च, फिर भी बढ रहा कुपोषण दिसंबर 2018 में 22050 थे, मई-जून में 22250 हो गए