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दुनिया भर के टैलेंट को अपने यहां बुला रहा चीन

दुनिया भर के टैलेंट को अपने यहां बुला रहा चीन

नई दिल्ली । चीन अपनी इकोनॉमी और वर्कप्लेस को मजबूत करने के लिए 'ग्लोबल रिक्रूटमेंट स्ट्रेटजी' पर काम कर रहा है। इसका मकसद पश्चिमी देशों से प्रतिभाओं को अपने यहां बुलाकर अमेरिका के वैश्विक नेतृत्व को चुनौती देना है। अगर चीन सफल होता है तो अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों से भर्ती की गई प्रतिभा से इसे टेक्नोलॉजी ट्रांसफर में मदद मिलेगी। साथ ही यह चीन को आर्थिक, तकनीकी और सैन्य रूप से अमेरिका से आगे निकलने में सक्षम बनाएगी। इसे देखते हुए अमेरिका को इस चीनी रणनीति से सावधान रहना होगा। साथ ही जो बाइडेन प्रशासन को अधिक प्रभावी प्रतिभा रणनीति तैयार करनी होगी। इसमें एक अधिक टारगेटेड इमिग्रेशन पॉलिसी अपनाना शामिल है जो दुनिया के सबसे अच्छे और प्रतिभाशाली दिमागों को आकर्षित करे। यह रणनीति लंबे समय से चली आ रही है। 1950 के दशक में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) पश्चिम के सैकड़ों वैज्ञानिकों को चीन लौटने का लालच देने में सफल रही। इन वैज्ञानिकों ने 1964 में चीन के परमाणु बम और 1967 में हाइड्रोजन बम का निर्माण किया। 1970 में उन्होंने अंतरिक्ष में चीन के पहले उपग्रह को लॉन्च करने में मदद की। 1999 में चीन की 'वैश्विक भर्ती रणनीति' को  लेकर काफी हंगामा हुआ। दरअसल, सीसीपी ने इसके तहत दो बम, एक उपग्रह प्रोजेक्ट के लिए 23 लोगों को राष्ट्रीय पदक प्रदान किए, जिन्होंने कार्यक्रम में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। बीजिंग ने पिछले कुछ सालों में कुख्यात हजार प्रतिभा कार्यक्रम (टीटीपी) सहित 200 से अधिक प्रतिभा भर्ती योजनाएं तैयार की हैं। इस कार्यक्रम के तहत चीन ने विदेशों से उच्च स्तरीय प्रतिभाओं की भर्ती की। भर्तियों की संख्या बहुत अधिक है। मीडिया आउटलेट के अनुसार, विदेशों से 3,900 उच्च-स्तरीय 'स्टडी अब्रॉड' प्रतिभाओं के साथ कुल 6,000 उच्च-स्तरीय प्रतिभाओं की भर्ती की गई।
 

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