नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेपाल यात्रा वहां चीन के दखल को कम करने में निर्णायक साबित होगी। महज दो महीनों के भीतर दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों का एक-दूसरे देशों की यात्रा करना न सिर्फ पुराने संबंधों को पटरी पर लाने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे संबंधों में प्रगाढ़ता भी बढ़ेगी। नेपाल के मामलों में चीन को अलग-थलग करने के लिए भारत के लिए यह बेहद जरूरी है। विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा भी इस यात्रा को महत्वपूर्ण बताते हुए कहते हैं कि पिछले महीने नेपाल के प्रधानमंत्री भारत आए थे। इस दौरान विभिन्न मुद्दों पर द्विपक्षीय वार्ता हुई थी। अब इस वार्ता को वहां से आगे बढ़ाया जाएगा। भारत, नेपाल का बेहद पुराना सहयोगी रहा है तथा सांस्कृतिक रूप से भी दोनों गहरे जुड़े हैं। नेपाल की पिछली कम्युनिस्ट सरकार के कार्यकाल में जिस प्रकार से लिपुलेख और कालापानी सीमा विवाद को उछाला गया, वह स्पष्ट है कि चीन के इशारे पर हुआ। इसी प्रकार वहां चीन के निवेश को ज्यादा तरजीह दी जाने लगी तथा भारत विरोधी माहौल बनाने के प्रयास हुए। लेकिन, सरकार बदलने के बाद स्थितियां बदली हैं। पिछले महीने प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने अपनी दिल्ली यात्रा में सीमा विवाद का राजनीतिकरण नहीं करने तथा तय तंत्र के जरिए समाधान निकालने पर सहमति प्रकट की। इसी प्रकार लंबित परियोजनाओं पर भी कार्य आगे बढ़ाने पर सहमति हुई है। विदेश मामलों के जानकार कहते हैं कि महज डेढ़ महीने के भीतर ही प्रधानमंत्री का नेपाल यात्रा जाना चीन के लिए भी संकेत है कि नेपाल उसके इशारों पर नाचने वाला नहीं है तथा वह भारत को पुराने एवं सच्चे मित्र के रूप में देखता है। नेपाल में बिजली परियोजनाओं, संचार, डिजिटल समेत कई क्षेत्रों में भारत ने पहले से ही निवेश कर रखा है। इस यात्रा के दौरान उसकी समीक्षा होगी ताकि तय समय में परियोजनाएं पूरी हों, साथ ही और भारत क्या कुछ कर सकता है, इस दिशा में भी दोनों प्रधानमंत्री चर्चा करेंगे।
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प्रधानमंत्री मोदी की नेपाल यात्रा से चीन को जाएगा सीधा संदेश