सियोल, दक्षिण कोरिया । प्रशांत क्षेत्र में अपनी चीन की बढती गतिविधियों के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन 6 दिनों के लिए दक्षिण कोरिया और जापान की यात्रा पर हैं। बतौर राष्ट्रपति जो बाइडेन की यह पहली एशिया यात्रा है। इस यात्रा का मकसद दोनों देशों के साथ अमेरिकी संबंधों को मजबूती प्रदान करना है। साथ ही चीन को कड़ा संदेश भी देना है कि वो प्रशांत क्षेत्र में अपनी गतिविधियों पर विराम लगाए। इस क्षेत्र में दशकों से अस्थिरता का माहौल बना हुआ है। ताइवान, उत्तर कोरिया, दक्षिण चीन सागर, भारत-चीन सीमा और कुरील द्वीप समूह सहित सभी हॉट-स्पॉट में रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव देखा जा रहा है।
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, रूस-यूक्रेन युद्ध ने क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा बेहद अहम हो जाती है। सैन्य दृष्टिकोण से एशिया में उपरोक्त पांच हॉट-स्पॉट पर अमेरिका की बराबर नजर रहती है। पहले बात करते हैं ताइवान की। चीन के तट से 110 मील (177 किलोमीटर) से भी कम दूरी पर स्थित है ताइवान का द्वीप। 70 सालों से भी अधिक समय तक ताइवान पर अलग-अलग शासन रहा है, लेकिन इसने चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) को द्वीप पर अपना होने का दावा करने से नहीं रोका है।
वहीं प्रशांत क्षेत्र की अन्य शक्तियों, खासकर जापान को सावधान किया गया है। जापानी अधिकारियों का कहना है कि उनके देश की ऊर्जा जरूरतों का 90 फीसदी ताइवान के आसपास के पानी के माध्यम से आयात किया जाता है। यह दर्शाता है कि जापान की आर्थिक स्थिरता के लिए ताइवान कितना अहम है। अमेरिका ताइवान को सुरक्षा देने के लिए भी प्रतिबद्ध है। ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति की जापान यात्रा के महत्व को समझा जा सकता है। अगर बात करें उत्तर कोरिया की तो इस साल किम जोंग उन की सरकार ने रिकॉर्ड संख्या में मिसाइल परीक्षण किए हैं। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि साल 2017 के बाद पहली बार वह परमाणु हथियार का परीक्षण भी कर सकता है। हालांकि उत्तर कोरिया इन सालों में परमाणु परीक्षण के लिए तैयार था, मगर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और किम जोंग की असफल शिखर सम्मेलन के बाद परीक्षण रुक गया था। विशेषज्ञों के मुताबिक प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की साझेदारियों के बल पर बाइडन उत्तर कोरिया से खतरे को कम कर सकते हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक चीन के उदय ने एशिया प्रशांत क्षेत्र को अमेरिका की प्राथमिकता बना दिया है। कुछ ही रोज पहले अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने कहा था कि चीन का उदय 21वीं सदी का सबसे बड़ा भू-राजनीतिक इम्तिहान है। इस बीच उत्तर कोरिया ने भी लगातार मिसाइल परीक्षण कर इस क्षेत्र में चिंताएं बढ़ा रखी हैं। इसे देखते हुए अमेरिकी रणनीतिकारों में आम राय बनी है कि जापान और दक्षिण कोरिया की एकजुटता बेहद जरूरी है। रूस इसे दक्षिण कुरील कहता है। साल 1945 में दूसरे विश्व यद्ध के दौरान जापान के आत्मसमर्पण के बाद सोवियत सेना ने कुरी द्वीप समूह पर कब्जा कर लिया था। द्वीप समूह पर अधिकार ने रूस और जापान में खटास पैदा कर दी है। शांति समझौता होने के बाद भी दोनों देशों में कुरील द्वीप समूह को लेकर अशांति हैं। जापान पहले ही यूक्रेन पर हमले की निंदा कर चुका है। इसी बीच रूस ने पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में अपनी सैन्य गतिविधियों को भी बढ़ा दिया है। लिहाजा, जो बाइडेन की चिंता भी बढ़ गई है।
तकरीबन 1.3 मिलियन वर्ग मील में फैले दक्षिण चीन सागर पर चीन अपना हक जमाता है। चीन का यह दावा वाशिंगटन और बीजिंग के बीच तनाव की एक अहम वजह रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यूक्रेन युद्ध के साथ-साथ ताइवान, उत्तर कोरिया और कुरील द्वीप समूह के आसपास बढ़ते तनाव के बीच दक्षिण चीन सागर के मुद्दे को फिलहाल कम करके आंका जा रहा है।
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सैन्य दृष्टिकोण से एशिया में पांच हॉट-स्पॉट पर अमेरिका की नजर, बाइडेन के जापान-कोरिया दौरे के मायने