नई दिल्ली । हर मां-बाप का सपना होता है कि उनका बच्चा पढ़कर एक अच्छा इंसान बने और उसे जीवन में कोई परेशानी नहीं हो। इसके लिए लोग अपनी गाढ़ी कमाई उसकी शिक्षा पर खर्च करते हैं। हाल ही में देश के 1.18 लाख स्कूलों के 34 लाख बच्चों पर किया गया एक सर्वे बच्चों की देखभाल, शिक्षा से जुड़ी प्राथमिकताओं और उपलब्धियों पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण 2021 में बताया गया है कि जैसे-जैसे छात्र आगे की कक्षाओं में बढ़ते जाते हैं, उनका प्रदर्शन खराब होता जाता है। पिछले साल नवंबर में यह व्यापक सर्वे कक्षा 3, 5, 8 और 10 में किया गया। इससे पता चला कि बच्चों का औसत प्रदर्शन लगातार घटता चला गया। तीसरी कक्षा में विद्यार्थियों में जो सीखने की क्षमता थी, वह दसवीं तक आते-आते काफी घट गई। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की ओर से जारी एनएएस 2021 सर्वे के नतीजे हर अभिभावक और अध्यापक के लिए चिंता की बात है।
उदाहरण के तौर पर गणित में औसत अंक कक्षा में बढ़ने के साथ ही 57 प्रतिशत से 44% के बाद 36 प्रतिशत और 32 प्रतिशत तक घट गया। पिछला राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण 2017 में हुआ था। उससे तुलना करें तो नए सर्वे में प्रदर्शन और भी निराशाजनक मालूम पड़ता है। कक्षा तीन का गणित में राष्ट्रीय औसत अंक 57 प्रतिशत रह गया है जो पिछले सर्वे में 64 प्रतिशत था। एक सामान्य व्याख्या यह है कि ऊंची कक्षाओं में विषय और जटिल होता जाता है और ऐसे में बच्चों को ज्यादा शैक्षणिक कौशल के साथ पढ़ाने की आवश्यकता है। उचित सहयोग और प्रशिक्षण के बगैर, सीनियर छात्रों के सीखने के स्तर और जरूरतों को पूरा करने में टीचर कहीं ज्यादा असफल साबित होंगे। यह भी समझना जरूरी है कि इस पर महामारी का कितना प्रभाव है?
सर्वे में पता चला कि 25 प्रतिशत स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को पढ़ाई में अभिभावकों से मदद नहीं मिली, 28 प्रतिशत विद्यार्थियों के घर पर डिजिटल डिवाइस नहीं है। यह पहलू भी महत्वपूर्ण है कि 80 प्रतिशत छात्रों ने कहा है कि वे स्कूल में चीजों को ज्यादा अच्छे से सीखते हैं, जहां उन्हें सहपाठी काफी मदद करते हैं।
97 फीसदी टीचरों ने अपनी जॉब पर संतुष्टि जताई जबकि शिक्षण परिणाम अच्छे नहीं हैं। इस सर्वे से निकली सक्सेस स्टोरीज पर गौर करने और उस तरीके को अपनाने की जरूरत है। जैसे, यह समझना महत्वपूर्ण है कि कैसे पंजाब के छात्र हर कक्षा और विषय में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। यहां कक्षा 10 साइंस में औसत 46 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय औसत 35 प्रतिशत है। छात्रों के प्रदर्शन के साथ ही टीचरों के स्किल्स पर भी ध्यान देने की जरूरत है। कक्षा को पास करने के लिए की जाने वाली पढ़ाई किसी काम नहीं आने वाली। युवा भारतीयों का भविष्य दांव पर लगा है। अपने समाज में आज भी एक बड़ा तबका बेटियों को लेकर आम धारणा रखता है कि सामान्य रूप से पढ़ाई-लिखाई करा दो, उसे तो एक दिन 'अपने घर' जाना है। बेटी की पढ़ाई पर वे ज्यादा खर्च नहीं करना चाहते हैं लेकिन सर्वे के नतीजे ऐसे लोगों की आंखें खोल सकते हैं।
ज्यादातर स्तर पर बेटियों ने बेटों को पीछे छोड़ दिया है। साइंस, अंग्रेजी जैसे विषयों में वे लड़कों से काफी आगे हैं। तीसरी कक्षा में भाषा की परीक्षा में बेटियों के राष्ट्रीय औसत अंक 323 तो बेटों के 318 थे। इसी तरह 10वीं में अंग्रेजी की परीक्षा में बेटियों के औसत अंक 294 जबकि बेटों के 288 अंक रहे।
सर्वे में एक अच्छी बात यह भी पता चली है कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच पढ़ाई का अंतर पहले के मुकाबले कम हुआ है। अंग्रेजी विषय में अभी गांव के बच्चों का प्रदर्शन शहर की तुलना में कमजोर है। इस सर्वे का मकसद तीसरी, पांचवी, आठवीं एवं दसवीं कक्षा के छात्रों के पठन-पाठन और सीखने की क्षमता सहित स्कूली शिक्षा प्रणाली की स्थिति का मूल्यांकन करना था। इस सर्वे में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के 1.18 लाख स्कूलों के 34 लाख छात्रों ने हिस्सा लिया।
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ग्रामीण-शहरी बच्चों में कम हुआ पढ़ाई का अंतर, साइंस में पंजाब के बच्चों का प्रदर्शन राष्ट्रीय औसत से अच्छा -तीसरी, पांचवी, आठवीं एवं दसवीं कक्षा के 1.18 लाख स्कूलों के 34 लाख बच्चों पर सर्वे में सामने आई जानकारी