विश्व स्वास्थ्य संगठन को अक्सर अमेरिका और चीन पर तो मेहरबान होते देखा गया है,लेकिन भारत को लेकर पता नहीं क्यों उसकी भावनाओं में दुराग्रह की गंध आती रही है। यह बात कोविड-19 से प्रभावित या मृत लोगों के बारे में खासकर देखी जाती रही है। कुछ दिनों पहले इस वैश्विक संगठन ने हैरतनाक आंकड़े जारी किये। इनमें कहा गया है कि भारत में उक्त महामारी से 40 लाख 74 हजार लोग असमय काल कलवित हो गए । यह आंकड़ा चिंता में डालने वाला तो है ही ,विश्व पटल पर स्वास्थ्य सेवाओं के संदर्भ में भारत की छवि को धूमिल करने वाला भी है। कारण कि भारत सरकार ने अधिकृत रूप से कहा है कि भारत में कोरोना के कारण दो सालों में कुल चार लाख 81 हजार मरीज मारे गए। यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो सही आंकड़ा भारत सरकार के दिए आंकड़ें से कहीं दस गुना अधिक है।
उक्त आंकड़ें का 23 मई को भारत के स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंदा विया ने जिनेवा में वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन की असेंबली के 75 वें अधिवेशन का कड़ा प्रतिकार किया है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा है कि उक्त आकंड़े जारी करते वक्त डब्ल्यू. एच. ओ. ने भारत की सम्बंधित संस्थाओं द्वारा जारी अधिकृत आंकड़ों का संज्ञान लेना उचित नहीं समझा। दरअसल ,विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मई 05 को जारी रपट में अंदाज लग गया है कि पिछले दो सालों में दुनियाभर में लगभग साठ लाख लोग कोरोना के कारण प्राण गवां बैठे। रपट कहती है कि सबसे ज्यादा प्रभाव दक्षिण पूर्व एशिया ,यूरोप,अमेरिका में देखा गया ,और भारत में तो चालीस लाख 81 हजार मरीज काल कलवित हुए।अंकगणित का सामान्य विद्यार्थी और जागरूक नागरिक को विश्व स्वास्थ्य संगठन के उक्त आंकड़े हास्यदप्रद या बढ़ा - चढ़ा कर दिए गए ही लगेंगे ।क्यों? कारण मीडिया में लगातार खबरें आती रही हैं कि अमेरिका, और इटली जो दुनिया में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर क्रमशः प्रथम,एवं द्वितीय स्थान पर आते है, में कोरोना से लगातार मरने वालों के कारण प्रलय जैसी स्थिति हो गई थी। भारत में भी हालात सम्हाले नहीं सम्हल रहे थे , खासकर दूसरी लहर में,लेकिन इसके बावजूद टीकाकरण में भारत नम्बर वन पर रहा। इतना ही नही ,भारत ने अमेरिका को दवाइयां भेजी और70 से ज्यादा दूसरे देशों को टीके भेजे। सही है कि कोरोना का कहर अभी भी पूरी तरह रूका नहीं है ,लेकिन तमाम वैज्ञानिक ,डॉक्टर्स और अन्य जानकार यह भी कह चुके है कि कोरोना वायरस इतनी जल्दी जाने वाला नहीं है। कुछ वैज्ञानिकों का तो यहॉं तक कहना है कि अब दुनिया को कोविड-19 वायरस के साथ ही जीने की आदत डालनी पड़ेगी।सही है कि जब भी कोई नैसर्गिक आपदा आती है ,तो सरकारें जनता का भय और अपने निकम्मेपन को दबाने के लिए भी हताहतों के आंकड़ों के साथ मनमानी करती है। यह भी ज्ञात हो चुका है कि 2020 में करीब चालीस लाख लोग असमय मृत्यु का शिकार हुए थे । ये भी तथ्य है कि कोविड के प्रहार को शुरू शुरू में सरकार ने आवश्यक गम्भीरता से नहीं लिया , लेकिन क्या यह सच लगता है कि एक साल यानी मार्च 22 से 31 दिसम्बर 2020 के दौरान चालीस लाख लोग कोरोना से मारे गए। यह कटु सत्य है कि कैंसर के कई सफल इलाज निकल जाने के बावजूद इस रोग से आज भी सबसे ज्यादा मरीज भारत मे ही मारे जाते हैं। कैंसर के बारे में एक शोध कहता है कि यह 332 प्रकार का होता है। मलेरिया, हदयरोग,स्वाइन फ्लू,चिकनगुनिया, वायरल बुखार ,पीलिया,टीबी,एड्स जैसी अन्य कई बीमारियां है ,जिनसे लोग बड़ी संख्या में रोज प्राण गवां बैठते है। ठीक है कि भारत की स्वास्थ्य सेवाओं में कई कमियां है ,लेकिन इसी देश में रातों रात कई अनगिनत कोविड सेंटर खोले गए। लाखों की संख्या में लोगों को बचाया गया। इसमें डॉक्टर्स,नर्सेस,अन्य मेडिकल फोर्सेस ,सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार और लेखक महीनों तक दिन रात सक्रिय रहे । हमारी आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति ने कमाल कर दिखाया । लोग घरेलू नुस्खों से तक ठीक हुए। डॉक्टरों पर हेलीकॉप्टरों से फूलों की वर्षा नहीं की जाती ।कई डॉक्टर्स ,नर्सेस और अन्य पैरा मेडिकल के लोग शहीद हुए । कई पत्रकारों की भी जानें गई लेकिन मरते मरते उन्होनें कोविड मरीजों को बचाने की हरचंद कोशिश की । इसलिए यह क्यों नहीं माना जाए कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विदेशी मीडिया के एक बड़े वर्ग में 40 लाख का आंकड़ा पढ़कर उसे सच मान लिया। डब्ल्यू .एच. ओ. एक वैश्विक संगठन है जिसका भारत भी एक सम्मानित सदस्य है, लेकिन उक्त संगठन चीन और अमेरिका के इशारों पर काम करने को अभिशप्त है,क्योकि उक्त दोनों देशों ने इस संगठन के लिए तिजोरियां खोल रखी है। यदि यह संगठन पाक साफ होता तो नब्बे दिन की लिमिट के बावजूद कभी तो जाहिर करता कि चीन ने कोरोना वायरस अपनी प्रयोगशाला में विकसित किया या यह वायरस चमगादड़ों वगैरह से फैला। इसी संगठन ने यह बदख्याली भी फैलाई थी कि यह वायरस तो हवा से फैलता है या वायु जनित (एयर बोर्न )है बाद में इसी संगठन ने उक्त खबर वापस भी ले ली।
दुखद यह है कि इसी तरह कि अटपटे आंकड़ों और खबरों को आधार बनाकर विपक्ष के राहुल गांधी ,ममता बैनर्जी जैसे अधकचरे नेता जबरन का हल्ला गुल्ला मचाते है। यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन के दावों में जरा भी दम होता तो भारत का मीडिया इतना मरियल ,निष्ठुर ,गैरजिम्मेदार आज भी नहीं है कि सरकारी लफ्फाजी की हवा नहीं निकाल देता।
( लेखक-नवीन जैन )
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