लखनऊ । बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायवती ने रामपुर से प्रत्याशी न उतारकर सपा नेता आजम खां को 'वॉक ओवर' दिया है। माना जा रहा है कि आजम के इस्तीफे से खाली हुई इस लोकसभा सीट पर उनके ही परिवार का कोई सदस्य चुनाव लड़ेगा। हालांकि, मायावती ने प्रत्याशी न उतारने के पीछे यह वजह बताई है कि इस सीट पर अभी और मजबूती से तैयारी की जरूरत है। असल वजह आजम के प्रति हमदर्दी दिखाने की कोशिश है। इससे पहले बसपा प्रमुख आजम के लिए हमदर्दी भरा बयान दे चुकी हैं। उन्होंने कहा था कि आजम को सवा दो साल तक जेल में बंद रखना लोकतंत्र का गला घोंटने जैसा ही है।
रामपुर सपा के कद्दावर नेता आजम का गढ़ रहा है। वह रामपुर विधान सभा सीट से नौ बार विधायक रह चुके हैं। उन्होंने 2019 में भाजपा की लहर के बावजूद लोकसभा सीट जीती। इसके बाद उपचुनाव में उनकी पत्नी तंजीम फातिमा रामपुर से विधायक बन गईं। उनके बेटे अब्दुल्ला आजम जिले की ही स्वार टांडा सीट से 2017 का चुनाव जीते थे। लंबे समय तक रामपुर की ज्यादातर विधानसभा सीटों पर सपा का कब्जा रहा है। ऐसे में मायावती को पता है कि यहां अच्छा प्रदर्शन कर पाना आसान नहीं है। यह भी वजह है कि यहां से उन्होंने कोई प्रत्याशी नहीं उतारा।
पिछले विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में मुसलमान प्रत्याशी उतारने के बावजूद मुसलमान वोटर बसपा से दूर ही रहे। चुनाव में करारी हार के बाद मायावती खुद कई बार यह बात कह चुकी हैं। तब से वह मुसलमान वोटरों को अपने पक्ष में लाने के लिए लगातार बयान भी दे रही हैं। सपा को एकमुश्त वोट मिलने के बावजूद सरकार न बना पाने पर उन्होंने यह भी तंज किया था। कहा था कि अब मुसलमान भी समझ गए हैं कि सपा को वोट देने से फायदा नहीं है। वे अब सपा को वोट नहीं देंगे। आजम के प्रति हमदर्दी दिखाने की भी यही वजह है कि वह बड़ा मुसलमान चेहरा हैं। खासतौर से रामपुर में जहां 50 फीसदी से ज्यादा मुसलमान आबादी है। रामपुर में आधी आबादी हिंदुओं की भी है। ऐसे में अगर हिंदू वोटों का विभाजन नहीं होता तो इसका फायदा भाजपा को भी मिल सकता है। इससे पहले 1991, 1998 और 2014 का चुनाव इसका उदाहरण है। हिंदू वोट एकमुश्त भाजपा को मिला तो जीत दर्ज की थी। बसपा भी यहां पर जब चुनाव लड़ी है तो 80-90 हजार तक वोट लेकर तीसरे-चौथे नंबर पर रही है। बसपा के इन वोटरों में एक बड़ा वर्ग अनुसूचित समाज का होता है। अगर बसपा प्रत्याशी नहीं उतारती है तो यह वोटर भाजपा की तरफ जा सकते हैं। वैसे भी पिछले चुनावों में बसपा से जो दलित वोटर छिटके हैं, उन्हें भाजपा उन्हें अपनी तरफ लाने में कामयाब रही है।
आजमगढ़ में बसपा प्रत्याशी शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली सपा के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं। उनको बसपा ने 2012 और 2017 में मुबारकपुर विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया था। दोनों बार उन्होंने जीत दर्ज की। वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने जमाली को तत्कालीन सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चुनाव लड़ाया था। इस चुनाव में उन्हें 2.66 लाख वोट मिले थे। इसमें मुलायम भाजपा प्रत्याशी से 63 हजार वोट से जीते थे। गुड्डू जमाली भाजपा प्रत्याशी से 10 हजार वोट से पीछे थे।
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आजम के गढ़ में मायावती के नरम तेवर, प्रत्याशी न उतार दिया वॉक ओवर