नई दिल्ली । लखनऊ के पीजीआई क्षेत्र के यमुनापुरम में मां ने अपने बच्चे को ऑनलाइन गेम खेलने से रोका तब बेटे ने मां की गोली मारकर हत्या कर दी। आखिर क्या वजह है कि कम उम्र के बच्चों में सहनशीलता कम हो रही हैं, और ऑनलाइन गेम बच्चों में नशे की तरह घुलते जा रहे हैं। मामले पर कुछ मनोरोग विशेषज्ञों ने अपनी बात रही। वरिष्ठ मनोरोग चिकित्सक ने बताया कि पब्जी जैसे गेम में चार महत्वपूर्ण बिंदु होते हैं। पहला कि उसमें स्पीड अधिक होती है, दूसरा उसमे आवेग अधिक होता है, तीसरा चैलेंज होते हैं और चौथे नंबर पर अग्रेशन होता है। इसकारण बच्चा उसी गेम को खेलते खेलते अग्रेसिव बन जाता है। इस तरह के अग्रेसिव गेम से बच्चों को दूर रखें क्योंकि इससे बच्चों की याददाश्त कम हो जाती है और बच्चे असल दुनिया में लोगों से घुलना मिलना भूल जाते हैं। इंटरनेट को चाहें तो बच्चों से दूर ही कर दें। बच्चे को आउटडोर गतिविधियों में ज्यादा ध्यान देने के लिए कहें और बच्चा इंटरनेट पर क्या देख रहा है, उसके दोस्त कैसे हैं, उनके बीच में क्या बातें हो रही हैं इन सब का ध्यान रखें तभी बच्चों को इस तरह की घटनाओं से बचाया जा सकता है।
वहीं वरिष्ठ मनोचिकित्सक ने बताया कि किशोरावस्था में करीब इंटरनेट के नशे की जो लत है वह इंटरनेशनल जनरल 2020 के अनुसार 20 से 23 प्रतिशत है। किशोरावस्था में नशा चाहे जैसा भी हो बच्चों को तेजी से अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। इसका समाधान यही है कि मां-बाप भी बच्चे के सामने मोबाइल का कम से कम इस्तेमाल करें। बच्चे को इंटरनेट के इस्तेमाल से थोड़ा दूर करें। बच्चे को असल दुनिया और वर्चुअल दुनिया के बीच में अंतर बताकर बच्चों को सही गलत के बारे में बताएं। इतना ही नहीं कोशिश करें कि बच्चों को स्पोर्ट्स गतिविधियों में ज्यादा शामिल करे, ताकि उनका ध्यान मोबाइल या ऑनलाइन गेम पर न जाए।
एक अन्य वरिष्ठ मनोरोग चिकित्सक ने बताया कि 6 साल तक के बच्चों को इंटरनेट से एकदम दूर रखा जाना चाहिए। अगर बच्चा ज्यादा जिद करें तब सिर्फ आधे घंटे इस्तेमाल करने दें लेकिन अपनी निगरानी में। 6 से 12 साल तक के बच्चों को करीब एक घंटा अगर वह इस्तेमाल करना चाहे, तब इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन उन्हें एग्रेसिव गेम से दूर रखें और हफ्ते में एक दिन डिजिटल डिटॉक्स डे मनाए जिस दिन इंटरनेट से बच्चों को पूरी तरह से दूर रखें।
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चाहते हैं, अपने बच्चों की सलामती तब उन्हें इंटरनेट से कर दे दूर: मनोचिकित्सक