वाशिंगटन । पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से एससीओ बैठक कर कहा था कि यह युद्ध का दौर नहीं है। हमें शांति से सभी मामलों का हल करना चाहिए। पीएम नरेंद्र मोदी के बयान की काफी तारीफ हुई थी। अमेरिका, फ्रांस सहित दुनिया के कई देशों ने पीएम नरेंद्र मोदी की सीख की सराहना की थी। हालांकि अमेरिकी मीडिया ने पीएम मोदी की टिप्पणी और भारत के रुख पर सवाल उठाया है। कई विश्लेषकों के हवाले से लेख में कहा गया है कि एक तरफ भारत युद्ध से दूर रहने की बात कर रहा है, जबकि वास्तव में वह पुतिन के साथ ही है।
अमेरिकी मीडिया ने कहा कि एक ओर पश्चिमी देशों ने क्रेमलिन पर बैन लगाए हैं, वहीं भारत ने उन्हें नजरअंदाज किया। उससे बड़े पैमाने पर तेल, कोयला और फर्टिलाइजर की खरीद की गई। इससे पुतिन को आर्थिक तौर पर ताकत मिली। यही नहीं संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ दो बार लाए गए निंदा प्रस्तावों से भी भारत के दूर रहने पर सवाल उठाए हैं। अमेरिकी मीडिया ने कहा कि भारत के इस कदम से मॉस्को को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैधता मिली है। यही नहीं रूस में चीन, बेलारूस, मंगोलिया और ताजिकिस्तान के साथ युद्धाभ्यास में भारत भी शामिल हुआ था।
इतना ही नहीं भारत और रूस के संबंधों का जिक्र करते हुए लेख में लिखा कि बीते साल दिसंबर में जब यूक्रेन की सीमा पर रूस ने बड़े पैमाने पर सेना को तैनात किया था, तब पुतिन को नई दिल्ली में बुलाया गया था। इस लेख में कहा गया है कि शीत युद्ध के दौर से ही रूस और भारत के संबंध बेहतर बने हुए हैं। आज भी भारत हथियारों की जरूरत के मामले में रूस पर निर्भर करता है।
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पीएम मोदी और पुतिन के गहरे संबंध पर लेकर तिलमिलाई अमेरिकी मीडिया