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 इन दिनों अपने सियासी जीवन में सबसे कठिन दौर से गुजर रहीं हैं महबूबा मुफ्ती  

 इन दिनों अपने सियासी जीवन में सबसे कठिन दौर से गुजर रहीं हैं महबूबा मुफ्ती  

श्रीनगर । 63 वर्षीय महबूबा मुफ्ती ने अप्रैल 2016 से जून 2018 तक जम्मू-कश्मीर की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया था। इसके बाद के सियासी घटनाक्रम की वजह से उन्हें राज्य की सत्ता से बाहर होना पड़ा। वह बेहद मुखर राजनेता के रूप में जानी जाती हैं। वह अपने विवादित बयानों की वजह से अक्सर चर्चाओं में जगह बना लेती हैं। इस समय उन्हें अपने राजनीतिक जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजरना पड़ रहा है।
वह दिवंगत मुफ्ती मुहम्मद सईद की सबसे बड़ी बेटी हैं। उनकी बहन रूबिया सईद का जेकेएलएफ ने 1989 में अपहरण कर लिया था जब उनके पिता केंद्रीय गृहमंत्री थे। उन्होंने कश्मीर विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री ली और कुछ समय के लिए बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक और एक निजी एयरलाइन के साथ काम किया। 
1996 में राजनीति में प्रवेश करने के साथ ही महबूबा मुफ्ती ने फारूक अब्दुल्ला की अध्यक्षता वाली नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) का विरोध शुरू कर दिया। उन्होंने 1996 में विधानसभा का चुनाव अनंतनाग जिले के बिजबेहरा से लड़ा। उस समय उनके पिता के नेतृत्व में पीडीपी फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कान्फ्रेंस का विकल्प बनने का प्रयास कर रही थी। राज्य विधानसभा में विपक्ष की नेता के रूप में उन्होंने खुद को एक तेजतर्रार राजनेता के रूप में स्थापित किया। राजनीतिक रूप से उन्हें दबंग माना जाता है।
उनके बयान अक्सर उन्हें विवादों में डाल देते हैं। एक विवाद खत्म होता है तो दूसरा शुरू हो जाता है। इससे यह साबित होता है कि उन्हें विवादों के जरिए चर्चा में रहना पसंद है। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया। जिसे मूल रूप से उनके पिता ने 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के अध्यक्ष के रूप में तैयार किया था। दिवंगत मुफ्ती मुहम्मद सईद ने भाजपा और पीडीपी के गठबंधन को साउथ पोल और नॉर्थ पोल का मिलन बताया था। उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती ने मुख्यमंत्री के रूप में भाजपा के साथ असहज गठबंधन का नेतृत्व किया और जून 2018 में भाजपा गठबंधन सरकार से बाहर आ गई। अब स्थिति यह है कि महबूबा की पार्टी से लगभग सभी वरिष्ठ नेताओं ने इस्तीफा दे दिया है। उनकी पार्टी को एक महिला की पार्टी कहा जा सकता है। वह राजनीति में बेफिक्र रहती हैं। उनकी पार्टी के पूर्व नेताओं द्वारा उन्हें घमंडी और तानाशाही कहे जाने के बावजूद वह यह साबित करने के लिए खड़ी हैं कि आप उन्हें तोड़ सकते हैं लेकिन आप उन्हें बदल नहीं सकते। वर्तमान में उनके साथ बहुत कम वरिष्ठ सहयोगी बचे हैं फिर भी वह लगातार दौरा करती हैं और जनता के मुद्दों को उठाती हैं। 
 

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