राज्य सभा सांसद विवेक तंखा ने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायाल के कॉलेजियम द्वारा सुझाये गये नामों के संबंध में हाल ही हुये विवाद पर सवाल उठाते हुये विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद से जवाब मांगा कि उन्होंने अपने प्रश्न में यह भी पूछा कि क्या उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति और आचरण को जनहित में विनियमित करने के लिए संसदीय पहल करने पर कोई विचार किया जा रहा है। इस प्रश्न के जवाब में विधि और न्याय, संचार तथा इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद
उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए सिफारिश किए गए नामों की के संबंध में कोई विवाद नहीं है। उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति कार्यपालिका और न्यायपालिका दोनों की अंतर्वलित करने वाली सहयोगकारी और एकीकृत प्रक्रिया है। विभिन्न सांविधानिक प्राधिकारियों से सुझाव और अनुमोदन अपेक्षित है। मतभेद, यदि कोई हो, कार्यपालिका और न्यायपालिका द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए परस्पर रूप से सुलह कर लिए जाते हैं कि उपयुक्त व्यक्ति उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के उच्च सांविधानिक पद पर नियुक्त किया जाता है ।
तथापि, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों की न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को और व्यापक तथा पारदर्शी बनाने के लिए सरकार तारीख १३ अप्रैल २०१५ से संविधान (निन्नायवेंवा संशोधन) अधिनियम, २०१४ और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, २०१४ को प्रवृत्त किया है। तथापि, इन दोनों अधिनियमों को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी। उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय तारीख १६ अक्टूबर २०१५ द्वारा दोनों अधिनियमों को असांविधानिक और शून्य के रूप में घोषित किया। संविधान (निन्नायवेंवा संशोधन) अधिनियम, २०१४ के प्रवर्तन से पूर्व यथाविद्यमान कॉलेजियम प्रणाली को सक्रिय घोषित किया गया था। तत्पश्चात उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश तारीख १६दिसंबर २०१५ द्वारा सरकार को यह निर्देश दिया कि वह इसे पात्रता मानदंड, पारदर्शिता सचिवालय की स्थापना और शिकायतों से निपटने के लिए तंत्र पर विचार करते हुए उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम के परामर्श से विद्यमान प्रक्रिया ज्ञापन को इससे अनुपूरित करके अंतिम रूप दें ।
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राज्यसभा में तंखा ने उठाया सवाल कॉलेजियम प्रणाली में पारदर्शिता की आवश्यकता