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कर्नाटक: बहुमत सिद्ध करने की मांग के बहाने बागी विधायकों को कानून जद में लाना चाहते हैं कुमारस्वामी

कर्नाटक: बहुमत सिद्ध करने की मांग के बहाने बागी विधायकों को कानून जद में लाना चाहते हैं कुमारस्वामी

कर्नाटक में चल रहे राजनीतिक गतिरोध से परेशान सीएम कुमारस्वामी ने बहुमत सिद्ध करने की मांग कर कांग्रेस-जेडी(एस) विधायकों की बगावती तेवरों से निपटने की कोशिश की है। मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने विधानसभा में बहुमत परीक्षण की इजाजत मांगी है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सीएम बहुमत परीक्षण के जरिए बागी विधायकों को दल बदल कानून के पेंच में फंसाना चाहते हैं। दरअसल, एक बार विश्वास मत होता है, तो उस पर चर्चा और मतदान विधानसभा की बाकी सभी गतिविधियों को किनारे रखकर प्राथमिकता से किए जाएंगे। कांग्रेस और जेडी(एस) सभी विधायकों को सदन में रहने और प्रस्ताव के पक्ष में वोट देने के लिए व्हिप जारी करेंगे। इन विधायकों में वे विधायक भी शामिल होंगे जिनके इस्तीफों पर स्पीकर को फैसला करना है।
व्हिप का उल्लंघन करने के बाद विधायकों की सदस्यता पर दल बदल कानून के तहत तलवार लटक जाएगी क्योंकि बागी कांग्रेस और जेडी(एस) विधायकों की संख्या उनकी पार्टियों की संख्या की दो-तिहाई से कम है। ऐसे में अगर विधायक सदन में नहीं आते हैं या प्रस्ताव के विरोध में वोट करते हैं तो उन पर सदस्यता खोने का खतरा बना रहेगा। उसके बाद भले ही सरकार बहुमत परीक्षण में फेल हो जाए, स्पीकर विधायकों की सदस्यता रद्द कर सकते हैं। सदस्यता रद्द होने का मतलब यह है कि अगर भाजपा की सरकार बनती भी है तो ये विधायक उसका पक्ष नहीं ले सकेंगे और न ही उन्हें पार्टी बदलने का कोई फायदा मिलेगा। दरअसल, दल बदल कानून और संविधान के अनुच्छेद 164(1बी) के तहत अगर एक विधायक की सदन से सदस्यता रद्द कर दी जाती तो है वह तब तक मंत्री नहीं बन सकेगा/सकेगी, जब तक वह दोबारा चुनाव लड़कर विधायक न बन जाए। कानून में इस्तीफा देने वाले और सदस्यता खोने वाले विधायक में अंतर किया गया है। सफलतापूर्वक इस्तीफा देने वाला शख्स नई सरकार में मंत्री बन सकता है, जैसे गोवा में हुआ लेकिन सदस्यता खोने वाले विधायक को मंत्री बनने के लिए दोबारा सदन का हिस्सा बनने का इंतजार करना होता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सदस्यता जाने का डर और दूसरी ओर मंत्रीपद का मोह, कर्नाटक के बागी विधायकों को किस ओर ले जाता है। 

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