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कमजोर संगठन के साथ उपचुनाव में नहीं उतरना चाहते है : अखिलेश

कमजोर संगठन के साथ उपचुनाव में नहीं उतरना चाहते है : अखिलेश

लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेल चुके समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव करीब एक महीने बाद लखनऊ स्थित सपा कार्यालय पहुंचे, परिणामों के बाद वो छुट्टी मनाने लंदन चले गए थे। विदेश की लंबी छुट्टी से तरोताजा होकर वापस आए अखिलेश यादव ने सपा पार्टी कार्यालय में मीटिंग करते हुए उन्होंने अपने संगठन में फेरबदल के संकेत दिये और जिला पदाधिकारियों से लोक सभा चुनाव में हुई हार की विस्तृत रिपोर्ट मांगी। यूपी विधान सभा की 12 सीटों पर होने वाले उपचुनाव की तैयारियों को लेकर अभी पार्टी में माहौल ठंडा है और कार्यकर्ता भी शीर्ष नेतृत्व के अगले आदेशों के इंतज़ार में बैठे है। वहीं दूसरी तरफ पहली बार उपचुनाव में उतर रही है बसपा और भाजपा उपचुनाव की तैयारियों में जुट चुकी है। जबकि सपा में अभी अनिश्चितता का माहौल है। पार्टी कार्यकर्ता और नेता, लोक सभा चुनाव 2019 में मिली हार और गठबंधन टूटने से निराश है। अखिलेश यादव के सामने भी उपचुनाव में अकेले दम पर चुनाव लड़ कर अच्छे परिणाम लाने का दबाव है। क्योंकि पिछले लगातार 3 चुनाव में उनके नेतृत्व में पार्टी को हार के साथ खराब परिणामों का सामना करना पड़ा है।
अखिलेश यादव ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से जनता के बीच जाकर अन्याय का मुकाबला करने और जोरशोर से चुनाव अभियान में जुटने का आग्रह किया। उन्होंने कहा की कार्यकर्ताओं को जनता के बीच जाकर समाजवादी सरकार की उपलब्धियों की जानकारी देनी चाहिए और भाजपा सरकार में हो रहे अन्याय और ध्रुवीकरण के बारे में जनता को सचेत करने का काम करना चाहिए। हालांकि सपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बाते की शर्त पर बताया है कि इस बार सपा में उपचुनाव में टिकट पाने के लिए आवेदन करना होगा। आवेदन में प्रत्याशी को अपने जीवन में किए गए सभी सामाजिक और राजनीतिक कार्यों का ब्योरा देना होगा। आवेदन के बाद एक लिखित परीक्षा द्वारा प्रत्याशियों का चयन होगा। सपा अभी तक अभी तक उपचुनाव में उतरने के लिए किसी रणनीति बनाने में असफल रही है। जबकि दूसरी तरफ बसपा और भाजपा ने कई दौर की बैठकों के साथ चुनाव के लिए तैयारी ज़ोर शोर से शुरू कर दी है। गौरतलब है कि सपा के पास अब शिवपाल यादव जैसे नेते नहीं जो जमीन पर जाकर संगठन को मजबूत करने का काम करे।
सपा के नेता और कार्यकर्ता महागठबंधन होने बाद भी मिली हार और बसपा से गठबंधन टूटने के सदमे से अभी उबर नहीं पा रहे है। अखिलेश यादव को भी पता है की एक तरफ उनके पार्टी के कार्यकर्ता निराश और हताश है तो दूसरी तरफ उसे बसपा और भाजपा से चुनावों में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। लोकसभा परिणाम के आंकलन से ये स्पष्ट हो गया है की मुस्लिम वोट बसपा की तरफ खिसक रहा है और यादव वोट बैंक में भी भाजपा ने सेंधमारी कर ली है। यही कारण है मुस्लिम-यादव समीकरण पर भरोसा करने वाली सपा का वोट प्रतिशत करीब 4.24 फीसदी कम होकर अब 17. 96 फीसदी हो गया है। मायावती के लगातार आ रहे बयानों में भी वो मुस्लिम वोटरों को अपनी तरफ लुभाने का प्रयास करती नजर आ रही है। हालांकि यूपी में 12 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में सपा के पास मात्र एक रामपुर सीट थी, जहां से आज़म खान संसद पहुंचे है, इसलिए इस सीट को बचाए रखना सपा की पहली चुनौती होगी।

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