एंटीबायोटिक्स (प्रतिजैविक दवाओं) के ज्यादा इस्तेमाल से प्रतिरोधी कोशिकाओं को दुरुस्त रखने और विभिन्न संक्रमणों को दूर रखने वाले शरीर के ‘‘अच्छे’’ विषाणु मर सकते हैं। वैज्ञानिकों ने आगाह किया कि इनका अत्याधिक इस्तेमाल शरीर के लिए कुछ अच्छा प्रभाव डालने की जगह उसे नुकसान पहुंचा सकता है। इस अध्ययन में पाया गया कि शरीर की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता संक्रमण से लड़ने और अवांछित जलन एवं सूजन को कम करने में प्रभावी हैं तथा एंटीबायोटिक्स ऐसी प्राकृतिक क्षमताओं को रोक सकते हैं। अमेरिका की ‘केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी’ के अनुसंधानकर्ताओं ने शरीर में रहने वाले विषाणु, उनके फैटी एसिड और श्वेत रक्त कणिकाओं (डब्ल्यूबीसी) के कुछ प्रकारों का विश्लेषण किया, जो मुंह के संक्रमण से लड़ने में सक्षम होते हैं।
केस वेस्टर्न में सहायक प्राध्यापक एवं प्रमुख अनुसंधानकर्ता पुष्पा पंडियान ने कहा, हमने यह जानने के लिए प्रयोग किया, अगर किसी फंगल संक्रमण से लड़ने के लिए हमारे पास विषाणु नहीं होगा, तो क्या होगा। इन अनुसंधानकर्ताओं में भारतीय मूल के वैज्ञानिक नटराजन भास्करन और शिवानी बुटाला शामिल थी। उन्होंने बताया कि जानलेवा संक्रमणों को ठीक करने के लिए अब भी एंटीबायोटिक्स की जरूरत पड़ती है। पंडियान ने कहा, हमारे शरीर में प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमताएं मौजूद हैं और इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। एंटीबायोटिक्स के बेवजह अत्याधिक प्रयोग से कोई लाभ नहीं होता। यह अध्ययन ‘फ्रंटियर्स इन माइक्रोबायोलॉजी’ में प्रकाशित हुआ है।
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एंटीबायोटिक्स के ज्यादा इस्तेमाल से कम होती है रोग प्रतिरोधक क्षमता