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एनडीए की एनएचडीपी और पीएमजीएसवाई योजना मेरी सोच का परिणाम : यशवंत सिन्हा

एनडीए की एनएचडीपी और पीएमजीएसवाई योजना मेरी सोच का परिणाम : यशवंत सिन्हा

 पूर्व केन्द्रीय मंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता रहे यशवंत सिन्हा ने एनडीए सरकार की प्रमुख योजनाएं राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (एनएचडीपी) और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) को उनकी सोच का परिणाम बताया है। सिन्हा ने अपने तत्कालीन सहयोगियों को उनके विचारों को गलत तरीके से अपना बताने पर नाराजगी भी जाहिर की है। राजनयिक से राजनेता बने सिन्हा 1998 से 2004 के बीच पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वित्त और विदेश मंत्री रह चुके हैं। वह 1990-91 में संक्षिप्त अवधि के लिये बनी पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर की सरकार में भी वित्त मंत्री रहे।
सिन्हा ने हाल ही में आई अपनी आत्मकथा 'रिलेन्टलेस' में कहा, 'राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना मेरी सोच का परिणाम है। मेरे लिये यह (एनएचडीपी) नई सोच नहीं थी। 1970 के दशक में जब मैं जर्मनी में तैनात था तो उस समय मैंने इस बारे में सोचा था। जर्मनी अपने राजमार्गों के लिये प्रसिद्ध है। इसके बाद मैंने संकल्प लिया कि जब भी मौका मिलेगा, मैं भारत में भी ऐसे ही राजमार्गों पर काम करूंगा।' 1998 में शुरू की गई एनएचडीपी में भारत में प्रमुख राजमार्गों को उच्च स्तर पर अद्यतन करना, पुन: स्थापित और चौड़ा करने का लक्ष्य रखा गया था। इसमें चार महानगरों को आपस में जोड़ने की स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना, श्रीनगर-कन्याकुमारी के बीच उत्तर-दक्षिण गलियारा तथा पोरबंदर-सिचलर के बीच पूर्वी-पश्चिमी गलियारे का निर्माण शामिल है।
पिछले साल भाजपा छोड़ चुके सिन्हा ने कहा दावा किया कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना भी उन्हीं की सोच है। सिन्हा ने अपनी किताब में वाजपेयी से हुई मुलाकात को भी याद किया जिसमें उन्होंने पहली बार गांवो में सड़कों के निर्माण के लिये नयी योजना शुरू करने और उसके लिये अलग से कोष बनाने का सुझाव दिया था। सिन्हा ने कहा, 'मैंने सुझाव दिया था कि योजना का नाम अटल बिहारी वाजपेयी ग्राम सड़क योजना रखा जाना चाहिये। वाजपेयी ने योजना शुरू करने के मेरे विचार को स्वीकार किया, लेकिन इसका नाम अपने नाम पर रखने के सुझाव को खारिज कर दिया।' सिन्हा ने दूसरे लोगों द्वारा उनकी सोच का श्रेय लेने पर "दुख" जताते हुए स्पष्ट किया कि उन्होंने वाजपेयी द्वारा इन योजनाओं का श्रेय लेने पर कभी बुरा नहीं माना क्योंकि वह "सरकार के प्रमुख" होने के अलावा हमारे शीर्ष नेता भी थे।

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