कई कंपनियों और शोधकर्ताओं ने लोगों की जानकारी के बिना उनके चेहरों के दर्जनों डेटाबेस तैयार कर लिए हैं। बड़ी संख्या में ऐसी इमेज दुनियाभर में शेयर की जा रही हैं। चेहरे की पहचान की टेक्नोलॉजी का दुनियाभर में विस्तार हो रहा है। ये डेटाबेस सोशल मीडिया नेटवर्क, फोटो वेबसाइट, डेटिंग सेवाओं और सार्वजनिक स्थानों पर लगे कैमरों से इमेज ले रहे हैं। डेटा सैट की निश्चित संख्या का पता नहीं है। लेकिन प्राइवेसी एक्टिविस्ट बताते हैं, माइक्रोसॉफ्ट, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी और अन्य डेटाबेस में एक करोड़ से ज्यादा इमेज हैं। दूसरे डेटा बेस के पास भी ये लाखों की संख्या में हैं। चेहरों की पहचान के सिस्टम बनाने के लिए चेहरे एकत्र किए जाते हैं। यह टेक्नोलॉजी न्यूरल नेटवर्क के इस्तेमाल से कई डिजिटल तस्वीरों का विश्लेषण कर चेहरे पहचानती है। रिसर्च पेपरों के अनुसार फेसबुक, गूगल के पास चेहरों के बड़े डेटा सैट हो सकते हैं जिन्हें वे किसी को नहीं देते हैं। लेकिन, अन्य कंपनियों और यूनिवर्सिटी ने भारत, चीन, स्विटजरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर में सरकारों, शोधकर्ताओं और निजी कंपनियों को इमेज का खजाना दिया है। इनका उपयोग ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की ट्रेनिंग में होता है।