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चीफ जस्टिस बोले- वह स्‍पीकर को नहीं कह सकते कि विधायकों के इस्तीफ़े पर कार्रवाई कैसे करें

चीफ जस्टिस बोले- वह स्‍पीकर को नहीं कह सकते कि विधायकों के इस्तीफ़े पर कार्रवाई कैसे करें

कर्नाटक के चल रहे राजनीतिक महाभारत के बीच 16 बागी विधायकों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सबसे पहले बागी विधायकों की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी अपना पक्ष रखा। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने मुकुल रोहतगी से पूछा कि अब तक क्या कुछ डेवलपमेंट है। रोहतगी ने कोर्ट को बताया कि 10 विधायकों के इस्तीफे पर स्पीकर को फैसला लेना है जो कि अभी पेंडिंग है, 10 विधायक पहले ही स्पीकर के सामने पेश हो चुके हैं। मुकुल रोहतगी ने कहा कि स्पीकर के सामने विधायकों को अयोग्य करार दिये जाने की मांग का लंबित होना, उन्हें इस्तीफे पर फैसला लेने से नहीं रोकता, ये दोनों अलग अलग मामले हैं। सीजेआई के पूछने पर रोहतगी सिलसिलेवार तरीके से पहले दिन से बदलते घटनाक्रम की जानकरी कोर्ट को दे रहे है। मुकुल रोहतगी ने कहा कि अगर स्पीकर इन विधायकों के इस्तीफे पर फैसला करते हैं तो राज्य की सरकार अल्पमत में आ जायेगी, 18 तारीख़ को विश्वासमत है।
इसके साथ ही वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि विधायक ये नहीं कह रहे कि अयोग्य करार दिए जाने की कार्यवाही खारिज की जाए वो चलती रहे, लेकिन अब वो विधायक नहीं रहना चाहते। वो जनता के बीच जाना चाहते हैं, ये उनका अधिकार है। स्पीकर बेवजह बाधा डाल रहे है। अगर कोर्ट पहुंचे विधायकों की संख्या हटा दी जाए, तो ये सरकार अल्पमत में है।
रोहतगी ने कहा कि अयोग्य ठहराने की कोई ठोस वजह नहीं है, इसीलिए अभी तक फैसला लटका हुआ है। बागी विधायकों के वकील रोहतगी ने कहा कि मैं अगर विधायक नहीं बने रहना चाहता हूं तो मुझे इस पद पर बने रहने के लिए कोई बाध्य नहीं कर सकता। मेरा इस्तीफा स्वीकार होना ही चाहिए। मैं पब्लिक में वापस जाना चाहता हूं। ये मेरा अधिकार है और मेरा अधिकार प्रभावित नहीं किया जा सकता।
इसके साथ ही रोहतगी ने ये भी कहा कि स्पीकर के पास विधायकों की अयोग्यता का केस स्पष्ट नहीं है। यही कारण है कि 2 फरवरी से अयोग्यता मामले पर अर्जी अभी तक लंबित है। जबकि विधायकों की अयोग्यता की दूसरी अर्जी 10 जुलाई को दायर की गई। मुकुल रोहतगी ने कहा कि विधायक स्पीकर के सामने मीडिया के सामने अपनी राय जाहिर कर चुके हैं कि वो अपनी मर्जी से इस्तीफा दे रहे हैं। फिर स्पीकर किस बात की जांच चाहते हैं। अगर विधायक असेंबली नहीं अटेंड करना चाहता, तो क्या उन्हें इसके लिए मजबूर किया जा सकता है।
रोहतगी ने कहा कि अयोग्य करार दिए जाने की कार्यवाही शुरू क्यों की गई, सिर्फ इसलिए क्योंकि वो पार्टी के अनुशासित सिपाही की तरह काम नहीं कर रहे थे। पार्टी मीटिंग अटेंड नहीं कर रहे थे। हमारा कहने का मतलब ये नहीं कि इस कार्यवाही पर स्पीकर फैसला नहीं ले सकता। हमारी आपत्ति सिर्फ इस बात को लेकर है कि इसके चलते इस्तीफे को लेकर फैसला रोका नहीं जा सकता।
इस पर चीफ जस्टिस ने बाग़ी विधायकों के वकील मुकुल रोहतगी की दलीलों पर टिप्पणी की। उन्‍होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट स्पीकर को नहीं कह सकता है कि वह विधायकों के इस्तीफ़े या अयोग्य ठहराने की कार्रवाई किस तरह करें, कोर्ट स्पीकर को इसके लिए रोक या बाधित नहीं कर सकती है। हमारे सामने सवाल महज इतना है कि क्या कोई ऐसी संवैधानिक बाध्यता है कि स्पीकर अयोग्य करार दिए जाने की मांग से पहले इस्तीफे पर फैसला लेंगे या दोनों पर एक साथ फैसला लेंगे। वकील रोहतगी ने कहा कि संविधान का आर्टिकल 190 कहता है कि इस्तीफा मिलने के बाद स्पीकर को जल्द से जल्द उस पर फैसला लेना होगा, स्पीकर फैसले को टाल नहीं सकते। इसके साथ ही बागी विधायकों की दलील पूरी हुई। इसके साथ ही रोहतगी ने पिछले साल मई में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का हवाला दिया जिसमें कोर्ट ने कर्नाटक की भाजपा सरकार को बहुमत साबित करने के लिए एक दिन के अंदर फ्लोर टेस्ट कराने के लिए कहा था।

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