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तनाव का असर होता है पाचन तंत्र पर -शरीर पर कई तरह के असर देखने को मिलते हैं

तनाव का असर होता है पाचन तंत्र पर -शरीर पर कई तरह के असर देखने को मिलते हैं

 अगर आपको पेट में रह-रह कर हल्का दर्द, ऐंठन और मरोड़ की समस्याएं रहती हैं। साथ ही शौच के बाद उन्हें लगता है कि पेट पूरी तरह से खारिज नहीं हो रहा है। कभी कब्ज तो कभी हल्के दस्त होते रहते हैं। इन सब समस्याओं के बाद भी उनकी सभी जांचें सामान्य आती हैं। इस कारण आपको लगता है कि डॉक्टर या आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान उनकी समस्याओं को समझने और उनका निदान-उपचार करने में विफल है। बीमारी को समझने के लिए हमें यह बात अच्छी तरह समझनी होगी कि अन्य सभी अंगों की तरह पाचन तंत्र के तार मस्तिष्क से जुड़े हैं। मस्तिष्क ये निकलने वाली ढेरों तंत्रिकाएं भोजन के पाचन और आमाशय और आंतों के चालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। खाना कैसे पचता है और किस तरह से वह मल बन कर गुदा से बाहर आ जाता है। यह सभी गतिविधियां केवल पाचन तंत्र अकेले नहीं तय करता। इसके लिए उसे दिमाग का भरपूर सहयोग चाहिए होता है। इस मस्तिष्क-पाचन-तन्त्र के अक्ष (ब्रेन-गट-ऐक्सिस) की इरिटेबल बावल सिण्ड्रोम में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, जिसे जानना सभी के लिए जरूरी है। आसान भाषा में यूं समझें कि मरीज की आंतें झुंझलाई हुई हैं। वे इरिटेटेड हैं। कई बार उनकी यह झुंझलाहट ऊपर से मस्तिष्क द्वारा उन पर थोपी जा रही है। इरिटेबल बावल सिण्ड्रोम के मरीजों में चिंता, बेचैनी (एंग्जायटी), अवसाद (डिप्रेशन) व अनिद्रा जैसे लक्षण बहुत देखने को मिलते हैं। यकीनन इन लोगों का मस्तिष्क अस्वस्थ होता है और इसका प्रभाव इनके पाचन तंत्र पर पड़ने लगता है। इसलिए इनमें ये लक्षण पैदा होते हैं, जिन्हें ये डॉक्टर को दिखाने पहुंचते हैं। इस सिण्ड्रोम के रोगी को यह बात अच्छी तरह समझनी होगी कि इस बीमारी में केवल पेट की दवाएं खा लेने भर से रोग से मुक्ति नहीं मिलने वाली बल्कि रोगी को अपनी मानसिक समस्याओं से निजात पाने के लिए व्यवहार और जीवनशैली में परिवर्तन करने की जरूरत होती है। उन्हें मस्तिष्क को स्वस्थ करने के लिए पहल करनी होगी और आवश्यकता पड़ने पर इसके लिए दवाओं का सेवन भी करना पड़ सकता है। तभी मस्तिष्क से निकलते तारों को दुरुस्त करके पाचन को ठीक और सुचारु किया जा सकेगा और वे इरिटेबल बावल सिण्ड्रोम से राहत पा सकेंगी।साथ ही कई बार मनोरोग चिकित्सक के सहयोग के बाद ही इन रोगियों का बेहतर उपचार गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट कर पाते हैं। रूपमती को स्वास्थ्य के लिए केवल दवाओं पर निर्भर नहीं रहना होगा। उन्हें यह भी समझना होगा कि केवल पेट के उपचार से इस बीमारी को हराया नहीं जा सकता। 

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