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आंखों की रोशनी तक छीन सकती है मोबाइल की रोशनी - नीले रंग की रोशनी सामान्य नहीं, बेहद खतरनाक

आंखों की रोशनी तक छीन सकती है मोबाइल की रोशनी  - नीले रंग की रोशनी सामान्य नहीं, बेहद खतरनाक

आपके मोबाइल फोन से एक ऐसी खतरनाक लाइट निकलती है जो आपके आंखों की रोशनी तक छीन सकती है। जितनी ज्यादा देर फोन पर बिजी रहेंगे, बीमारी की चपेट में आने की आशंका उतनी ही ज्यादा रहेगी। मोबाइल फोन से निकलने वाली नीले रंग की रोशनी सामान्य नहीं होती। यह  बेहद खतरनाक है। दिन में तो सूरज की रोशनी होने के कारण यह सीधे नहीं दिखती। रात को फोन इस्तेमाल के दौरान यह नीली रोशनी सीधे रेटिना पर असर डालती है। चीन में हुए एक अध्ययनमें साबित हो चुका है क‍ि एक महिला रोजाना सोते वक्त और सोकर उठने के तुरंत बाद फोन का इस्तेमाल करती थी। एक साल में उस महिला का कॉर्निया इसी नीली लाइट के कारण क्षतिग्रस्त हो गया। इसके अलावा नेत्ररोग विशेषज्ञों का मानना है कि मोबाइल स्क्रीन पर लगातार देखते रहने से आंखों का ब्लिंकिंग रेट कम हो गया है। सामान्य तौर पर प्रति मिनट 12 से 14 बार आंखें ब्लिंक करती हैं, लेकिन मोबाइल स्क्रीन पर बने रहने पर ब्लिंकिंग रेट छह से सात हो जाता है। इससे आंखों में ड्राइनेस बढ़ रही है और आंखें कमजोर हो रही हैं। मोबाइल से निकलने वाली इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक तरंगें हमारे स्वास्थ्य  लिए नुकसानदेह हैं। इन किरणों के कारण हमारी याददाश्त और सुनने की शक्ति प्रभावित हो सकती है। इससे निकलने वाले रेडिएशन के कारण कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो सकती है। 
मोबाइल फोन और उसके टावरों से होने वाले रेडिएशन से नपुंसकता और ब्रेन ट्यूमर हो सकता है। जब आपकी स्क्रीन पर दिखे कि सिग्नल पूरे हैं, तभी फोन का इस्तेमाल करें। सिग्नल कमजोर होने पर इसका असर रेडिएशन के रूप में पड़ता है इस दौरान मोबाइल को सिग्नल लिए मशक्कत करनी पड़ती है। कई शोधों में भी यह सामने आया है कि रेडिएशन का खतरा कमजोर सिग्नल के कारण ज्यादा होता है। पैंट के आगे के पॉकेट में फोन रखने से बचें, इससे नपुंसकता का खतरा होता है। इसके अलावा इसे दिल के पास न रखें और रात को सोते वक्त तकिये के नीचे तो कतई न रखें। तकिये के नीचे रखने से इसके रे‍डिएशन के कारण याददाश्त कमजोर हो सकती है। इसके अलावा फोन के ज्यादा गर्म होने की वजह से कई बार आग लगने की घटनाएं भी सामने आती रहती हैं। बात करते समय फोन को शरीर से दूर रखें। इससे रेडिएशन से कुछ हद तक बचाव संभव हो सकेगा। इसके लिए ईयर फोन का इस्‍तेमाल किया जा सकता है। कोशिश कीजिए क‍ि अधिकतम बातचीत मैसेज व चैटिंग के जरिए हो। एक सर्वेक्षण से पता चला है कि रेडियों तरंगों के रेडिएशन से उन चूहों के दिमाग डैमेज हो गए जिन पर ये अध्ययनकिया गया था। इलेक्ट्रि‍क फील्ड दीवारों या किसी अन्य फील्ड से ढके होते हैं, लेकिन रेडियोधर्मी अधिकांश दीवारों को पार कर सकते हैं। दरअसल मोबाइल से निकलने वाली इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक तरंगे हमारे स्‍वास्‍थ्‍य के लिए नुकसानदेह हैं। इन किरणों के कारण हमारी याददाश्त और सुनने की शक्ति प्रभावित हो सकती है।

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