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कम उम्र के स्कूली बच्चें हो रहे तनाव का शिकार -संसद में पेश एक रिपोर्ट में ये बातें कही गईं

कम उम्र के स्कूली बच्चें हो रहे तनाव का शिकार -संसद में पेश एक रिपोर्ट में ये बातें कही गईं

पिछले हफ्ते संसद में पेश एक रिपोर्ट में कहा गया है कि महज 11 साल की उम्र में स्कूली बच्चे मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं। जो हालात हैं, वे बड़ी चिंता पैदा करने वाले हैं। बच्चों का बालपन बचा रहे और उन्हें तनाव रहित शिक्षा और जिंदगी दी जा सके। इसके लिए तत्काल बड़े कदम उठाने की जरूरत है। मानव-संसाधन मंत्रालय (एचआरडी मिनिस्ट्री) की ओर से पेश इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 11 से 17 वर्ष की आयु-वर्ग के स्कूली बच्चे उच्च तनाव के शिकार हैं। इसके कारण कुछ एक को मनोवैज्ञानिक समस्याएं भी हो रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका तंत्र संस्थान बेंगलुरु की ओर से देश के 12 राज्यों में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण किया गया था। जानकारों के अनुसार, इसका सीधा संबंध शहरी जीवन और अंक आधारित प्रतियोगिता वाली स्कूली शिक्षा प्रणाली से है। इसका खुलासा एनसीआरबी के आंकड़ों से भी मिलता है। 2011 से 2018 के बीच लगभग 70 हजार छात्र खराब अंक या नतीजे के कारण खुदकुशी कर चुके हैं। इनमें लगभग 50 फीसदी घटनाएं स्कूल स्तर पर हुईं। पिछले दिनों तेलंगाना में दसवीं के नतीजे आने के बाद 50 से अधिक स्टूडेंट द्वारा खुदकुशी करने की खबरें आईं थीं। 
मानव-संसाधन मंत्रालय ने कहा है कि इस रिपोर्ट के आने के बाद 2018-19 से प्रभावी कदम उठाने की पहल हो गई है और स्कूल में काउंसलिंग की व्यवस्था के अलावा तनाव रहित माहौल बनाने की दिशा में कई कदम भी उठाए जा रहे हैं। स्कूलों में तनाव रहित शिक्षा देने के लिए काउंसलिंग की व्यवस्था पेशेवर लोगों की ओर से तो दी ही जाएगी, शिक्षकों को भी इसके लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। साथ ही इस प्रक्रिया में अभिभावकों को भी शामिल करने की सलाह दी गई है। साथ ही सिलेबस में जिंदगी को प्रेरणा देने वाली कहानियां को शामिल किया जाएगा जिसमें कठिन हालात में लड़ने की हिम्मत देने वाली कहानियां हो। जैसे 12वीं में जीवन की चुनौतियों का सामना’ (मीटिंग लाइफ चैलेंज) जैसे चैप्टर जोड़े जा रहे हैं। मंत्रालय के मुताबिक, सभी स्कूलों से कहा गया है कि वे बच्चों को ‘मंद गति से सीखने वाले’ या ‘प्रतिभाशाली बच्चे’ या ‘समस्याकारी बच्चे’ आदि नाम न दें। इस भेद से सबसे अधिक तनाव वाली स्थिति पैदा होती है। यह भी कहा गया कि स्वस्थ प्रतियोगिता करें, लेकिन किसी भी बच्चे को हीन भावना से ग्रसित करने की कोशिश को अपराध माना जाएगा। इसके अलावा, स्कूली सिलेबस में ऐसी चीज अधिक जोड़ने पर और जोर देने की कोशिश होगी, जो उनके आसपास की दुनिया और उनके अपने जीवन के साथ जोड़ने में बच्चों को सक्षम बना सकें। इसके लिए एनसीईआरटी को अलग से अडवाइजरी भी जारी की गई है। इस सर्वे में 34 हजार 802 वयस्क और 1 हजार 191 बच्चों-किशोरों से बात की गई थी। 13 से 17 आयु वर्ग के लगभग 8 फीसदी किशोरों में पढ़ाई के तनाव से पैदा मानिसक बीमारी पाई गई थी। इसमें सबसे हैरान करने वली बात ये थी कि गांवों में 6,9 फीसदी बच्चे को यह बीमारी थी, जबकि शहरी क्षेत्रों में लगभग दोगुना यानी 13,5 फीसदी बच्चों में तनाव देखने को मिला। 

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