भारत में वायु प्रदूषण एक बहुत बढ़ी समस्या बनकर उभर रहा है। इसके पीछे भूमिगत जल संरक्षण के लिए बनाई गई नीतियां भा जिसके कारण भारत में साल के आखिरी महीनों में वायु प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है। एक नए अध्ययन में शाधकर्ताओं ने यह दावा किया है। नासा की टाइम-सीरीज सैटेलाइट के डाटा का विश्लेषण कर शोधकर्ताओं ने कहा कि भूजल को बचाने के लिए किए जाने वाले उपायों के कारण उत्तर-पश्चिमी भारत की हवा में धुंध और स्मॉग बढ़ जाती है। एक नेचर पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि किस तरह से भूजल-उपयोग की नीतियों के कारण किसानों को धान की रोपाई में देरी होती है, जिससे फसल की कटाई में भी स्वाभाविक रूप से देरी हो जाती है और बाद में किसान फसलों के अवशेष को जला देते हैं। इससे वायु प्रदूषण और बढ़ता है, क्योंकि नवम्बर के माह में हवा स्थिर हो जाती है और वायुमंडल में मौजूद सूक्ष्म कण बिखर नहीं पाते और हवा विषाक्त हो जाती है।
अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बताया कि नवंबर में वायुमंडलीय परिस्थितियां ऐसी हो जाती हैं कि हवा में सूक्ष्म कणों की सांद्रता (घुलना) 30 फीसद बढ़ जाती है जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। अंतरराष्ट्रीय मक्का और गेहूं सुधार केंद्र (सीआइएमएमवाईटी) के साथ-साथ वैज्ञानिकों ने भी भूजल संरक्षण नीतियों, किसानों द्वारा फसल की रोपाई, कटाई और फसल के अवशेषों को जलाने के प्रभाव का विश्लेषण किया, जिसके चौंकाने वाले परिणाम सामने आए थे। कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर एंड्रयू मैकडॉनल्ड ने कहा कि इस विश्लेषण से पता चलता है कि हमें सिस्टम के नजरिए से कृषि के बारे में सोचने की जरूरत है, क्योंकि यह एक ऐसी समस्या नहीं है जिसे हम हल नहीं कर सकते। उचित प्रबंध के जरिये हम अपने उद्देश्यों को पूरा कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर-पश्चिमी भारत में वायु प्रदूषण और भूजल दो सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, जिससे लोग सबसे ज्यादा प्रभावित रहते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि भारत में वायु प्रदूषण की समस्या से बचने के लिए भूजल उपयोग की नीतियों में बदलाव के साथ-साथ किसानों को भी जागरूक होने की जरूरत है। किसानों को चाहिए कि वह फसल की कटाई के बाद अवशेषों को जलाने की बजाय उसका तुरंत निस्तारण कर दें। इसके लिए नई तकनीकों का सहारा लिया जा सकता है। आज बाजार में ऐसे उपकरण मौजूद हैं जो अवशेषों का निस्तारण कर सकते हैं। साथ ही छोटी अवधि में तैयार होने वाले चावल की किस्मों को भी उन्नत किया जा सकता है। इससे फसल की कटाई समय पर हो पाएगी और प्रदूषण से भी बचा जा सकता है।
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वायु प्रदूषण रोकने भारत में भूजल नीतियों पर पुनर्विचार जरूरी : नासा