भारत में एचआईवी, मलेरिया और डेंगू से मरने वाले लागों से ज्यादा मौतें हेपटाइटिस बी और सी से हो रही हैं। लेकिन फिर भी इस बीमारी के बारे में लोगों में अवेयरनेस नहीं है। यहां तक कि जिन लोगों को यह बीमारी होती है, वे भी लक्षणों को तब तक नहीं समझ पाते जब तक मामला सीरियस नहीं हो जाता। आपको जानकर हैरानी होगी कि टैटू से भी इसका इन्फेक्शन फैल सकता है। टैटू बनवाते समय पतली नीडल से इंक स्किन के अंदर डाली जाती है, जो ब्लड के संपर्क में आती है। ऐसे में अगर वह नीडल पहले से ही किसी ऐसे हेपटाइटिस इन्फेक्टेड शख्स की स्किन के अंदर पहुंचकर उसके ब्लड के संपर्क में आ चुकी है, तो उसके आगे जो लोग टैटू गुदवाएंगे, उन्हें हेपटाइटिस बी या सी के इन्फेक्शन का खतरा बहुत ज्यादा रहेगा। इतना ही नहीं इससे एचआईवी का खतरा भी है। अगर कोई टैटू बनाने वाला आर्टिस्ट नीडल को नहीं बदलता या सही तरीके से साफ नहीं करता तो यह सेफ्टी के खिलाफ है। इसलिए ऐसे किसी भी पार्लर से टैटू नहीं गुदवाएं, जिसे लाइसेंस न मिला हो। सड़क किनारे गुदवाने में यह खतरा बढ़ जाता है। वैसे तो ज्यादा आर्टिस्ट्स ग्ल्वस पहनते हैं। लेकिन सिर्फ ग्लव्स पहनना काफी नहीं है, उसे ग्लव्स पहनने से पहले हाथ को अच्छी तरह साफ करना चाहिए। यह भी ध्यान रहे कि आर्टिस्ट हर बार नए ग्लव्स पहनकर ही टैटू गोदे। सिर्फ टैटू मशीन को साफ करना ही काफी नहीं, मशीन को हर बार स्टरलाइज करना भी जरूरी है। कई बार किसी टॉवेल से पोंछकर मशीन को साफ कर दिया जाता है, जो कि हेपटाइटिस से बचने के लिए पर्याप्त सफाई नहीं है। स्टरलाइजेशन प्रक्रिया में केमिकल के इस्तेमाल से या गर्मी से बैक्टीरिया या वाइरस को मारा जाता है। -जहां पर टैटू गुदवाना हो, शरीर के उस हिस्से की सफाई भी जरूरी है। उसे भी केमकिल की मदद से स्टरलाइज किया जाना चाहिए।