पिछले दो दशकों के दौरान देश में चिकन के शौकीनों की तादाद में तेजी से इजाफा हुआ है। महानगरों से लेकर छोटे शहरों और कस्बों तक में चिकन खाने वालों की संख्या बढ़ने का नतीजा है कि देश में चिकन की मांग में भारी इजाफा हुआ है और आपूर्ति पूरी करने का दबाव बढ़ा है। इस बढ़ते दबाव के कारण चिकन को तेजी से बड़ा करने और उस बीमारियों से बचाने के लिए पोल्ट्री फार्म में मुर्गियों को एंटीबायॉटिक्स दिए जाने लगे हैं। मुर्गियों को अंधाधुंध तरीके से एंटीबायॉटिक्स दिए जाने के कारण इसका असर इंसानों के शरीर पर दिखाने लगा है। इसका नतीजा यह है कि बहुत से एंटीबायॉटिक्स के प्रति बैक्टीरिया और वायरस में प्रतिरोध बढ़ रहा है और ये कई केस में बेअसर साबित हो रहे हैं। यह स्थिति गंभीर मामलों में जानलेवा भी साबित हो सकती है। इसके साथ ही शरीर में बेवजह ऐंटीबायॉटिक्स के पहुंचने से इनके साइड इफेक्ट्स भी लोगों को झेलने पड़ रहे हैं। एक अध्ययन में कहा है कि भारत में चिकन में एंटीबायॉटिक्स की मात्रा बेहद ज्यादा है और यह इंसानी सेहत के लिए खतरनाक है।
विशेषज्ञों का कहना है कि मुर्गी पालकों को यह भ्रम है कि चिकन को दाने के साथ एंटीबायॉटिक्स खिलाने से उनकी ग्रोथ तेज होगी। उनका कहना है कि एंटीबायॉटिक्स किसी प्राणी को बीमारी होने पर दिए जाते हैं, न कि रोग से बचाव या ग्रोथ के लिए। बेवजह दवाएं देने से उस प्राणी पर तो इनका दुष्प्रभाव पड़ता ही है, उस खाने वाले इंसान के शरीर में भी बिना जरूरत के दवाएं पहुंच जाती हैं। जहां तक चिकन या अन्य मीट में एंटीबायॉटिक्स की मौजूदगी का सवाल है तो दुनिया के तकरीबन हर देश में यह समस्या है। कई देशों में इस बाबत रेगुलेशन हैं और मीट में इनकी सेफ मौजूदगी की सीमा तय है,लेकिन भारत में ऐसा नहीं है।
भारत में इस समय पोल्ट्री और मीट के लिए पाले जाने वाले पशुओं को हर साल करीब 2700 टन ऐंटीबायॉटिक्स खिलाए जा रहे हैं। अध्ययन में कहा गया है कि रोका नहीं गया तो 2030 तक इस मात्रा में 82 प्रतिशत तक का इजाफा होने की आशंका है। मुर्गियों और मीट के लिए पाले जाने वाले पशुओं को एंटीबायॉटिक्स खिलाने के मामले में भारत,दुनिया में चौथे नंबर पर है। अध्ययन में कहा गया है कि सिर्फ पंजाब में कम से कम दो तिहाई पोल्ट्री फार्म्स हैं, जहां चिकन को बड़ा करने के लिए एंटीबायॉटिक्स दिए जाते हैं। इन पोल्ट्री फार्म्स में इस तहर के बैक्टीरिया और वायरस मिले हैं, जिन पर बहुत सी दवाओं का कोई असर नहीं होता। ये बैक्टीरिया अगर देश के दूसरे कोनों में पहुंच गए तो इंसानी सेहत के लिए बड़ी समस्या खड़ी कर सकते हैं।
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एंटीबायॉटिक्स का बढ़ रहा इस्तेमाल चिकन के शौकीनों के लिए खतरा