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खुशहाल जिंदगी बिता रही अभिनेत्री सोनम

खुशहाल जिंदगी बिता रही अभिनेत्री सोनम

खुशहाल जिंदगी बिता रही अभिनेत्री सोनम
आजकल अपने पति आनंद आहूजा के साथ खुशहाल जिंदगी बता रही अभिनेत्री सोनम कपूर का मानना है कि आपको अपने बेस्ट फ्रेंड से शादी करनी चाहिए। सोनम के अनुसार प्यार तो होता है, मगर यदि दोस्ती न हो तो आप एक-दूसरे की इज्जत नहीं कर पाते। इसके अलावा आपकी विचारधारा और मूल्यों का भी एक जैसे होना जरूरी होता है, वरना दोनों के बीच संघर्ष चलता रहता है।
सोनम ने कहा कि पति आनंद बहुत ही शांत प्रवृत्ति के इंसान हैं। वह मेरे समय को लेकर बहुत पजेसिव नहीं हैं और मुझे भरपूर स्पेस देते हैं। वह मेरे काम को भी अपने काम जितना ही महत्व देते हैं। मैंने बहुत सारे पतियों को देखा है कि वे अपनी पत्नी से मोहब्बत तो बहुत करते हैं, मगर उनके काम को कम आंकते हैं। लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं है। मुझे और मेरे काम को मेरे पति से पूरी इज्जत मिलती है। मगर जैसे आनंद की प्राथमिकताएं बदली हैं, वैसे ही मेरी भी बदली हैं। अब मेरी प्राथमिकता आनंद व मेरा परिवार है। उसी तरह आनंद की प्राथमिकता भी मैं ही हूं। हमारे रिश्ते में काफी समानता है, मगर आपकी जिंदगी शादी के बाद बदल जाती है। आपको एक नया परिवार मिलता है। नए लोग मिलते हैं। आप बदल जाते हो, नई खुशी और नई जिम्मेदारियों के साथ।
आनंद सुबह चार या कभी-कभी साढ़े तीन बजे सोकर उठते हैं। उनका काम बहुत सुबह से शुरू हो जाता है। हालांकि मैं भी देर से उठनेवालों में से नहीं हूं, मगर साढ़े तीन-चार बजे तो उठ नहीं पाती। मैं जब भी सुबह उठती हूं, तो मेरा पति बिस्तर पर नहीं होता। यही एक चीज है, जो हमारे बीच सहमति नहीं बनाती। उनको रात को कहीं बाहर जाना पसंद नहीं है। मुझे भी नहीं है, मगर वह तो बिलकुल भी नहीं जाते, क्योंकि उन्हें अल सुबह उठना पड़ता है। दस बजे तो वह नींद की दुनिया में पहुंच चुके होते हैं। हम रात को पार्टियों में भी नहीं जाते।
सोनम के अनुसार आजकल अभिनेत्रियों के लिए हालातों में थोड़ा बदलाव तो है, मगर इतना नहीं है, जितना लोग देख या समझ रहे हैं। हिरोइनों का संघर्ष अब तक जारी है। आज भी हम हिरोइनों को इतनी इज्जत या जिम्मेदारी नहीं दी जाती। मुझे लगता है कि हम ज्यादा डिजर्व करते हैं, मगर हमें उतना मिलता नहीं। अभिनेत्रियों के लिए क्वालिटी वाले रोल कम लिखे जाते हैं। बॉलिवुड में अब भी नायकों को ध्यान में रखकर रोल्स लिखे जाते हैं। कहानियां भी मर्दों द्वारा मर्दों के लिए लिखी जाती हैं। महिला निर्देशक भी सिर्फ नायिकाओं को ध्यान में रखकर फिल्में कहां बनाती हैं? उनकी फिल्में भी तो हीरो प्रधान होती हैं। फराह खान हो या जोया अख्तर हों, सभी हीरोज के साथ फिल्में बनाती हैं। मुझे लगता है कि अभी हिरोइनों को और आगे आने की जरूरत है।


 

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