विक्रम क्यों हुआ क्रैश, चला पता -लैंडिंग प्रोग्राम में गड़बड़ी ने तोड़ी सारी उम्मीदें
चेन्नई । चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर से फिर से संपर्क होने की उम्मीद पूरा देश कर रहा था, लेकिन वैज्ञानिकों की टीम को शुरुआत में ही फिर से संपर्क नहीं होने की जानकारी मिल गई है। इसरो के वैज्ञानिकों को 7 सितंबर के शुरुआती पलों में ही पता चल गया था कि लूनर क्राफ्ट क्रैश के शुरुआती वक्त में ही पूरी तरह से नष्ट हो चुका है। चंद्रयान-2 की असफलता का आकलन कर रही टीम का मानना है कि ऑटोमैटिक लैंडिंग्र प्रोग्राम (एएलपी) में गड़बड़ी के कारण लैंडर विक्रम का ऐक्सिडेंट हुआ। वैज्ञानिकों की टीम का मानना है कि अभी तक की अनुसंधान से ऐसा लग रहा है कि इस क्रैश के बाद लैंडर विक्रम के फिर से काम करने की उम्मीद लगभग ना के बराबर है। वैज्ञानिकों की राय है कि लैंडर विक्रम की क्रैश लैंडिंग के कारण या तो वह पलट गया है या मुड़ गया। लेकिन, इतना अधिक क्षतिग्रस्त नहीं हुआ कि वह पहचान में भी न आ सके। दो वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी तक की जांच से ऐसा लग रहा है कि लैंडिंग प्रोग्राम में कुछ गड़बड़ी थी। लैंडिंग प्रोग्राम यूआर राव सैटलाइट सेंटर बेंगलुरु की ओर से लिखा गया था। एक वैज्ञानिक ने कहा, हमें देखना होगा कि लैंडिंग प्रोग्राम को जारी करने से पहले क्या इसका सही तरह से परीक्षण किया गया था या नहीं। सॉफ्टवेयर प्रोग्राम का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की सतह को छूने से 15 मिनट पहले तक की दूरी और ऊंचाई के आधार पर कंट्रोल सुनिश्चित करना था। विक्रम गिरकर काफी क्षतिग्रस्त हो गया तस्वीरों का आकलन करने वाले एक वैज्ञानिक ने कहा, अभी तक जो मैंने देखा है उसके आधार पर कह सकता हूं कि लैंडर विक्रम की परछाई मुझे नजर आई है। मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं विक्रम अपने पैरों पर नहीं गिरा है। मुझे ऐसा लगता है कि कम से कम विक्रम के 4 पैर क्षतिग्रस्त हुए हैं। या तो ये मुड़ गए हैं या फिर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है। इस असफलता के कारणों की पड़ताल करने वाले एक और वैज्ञानिक ने कहा कि विक्रम का संपर्क निश्चित तौर पर 10 किमी. (पहले इसरो ने यह दूरी 2.1 किमी. बताई थी) से भी कम दूरी पर ही टूट गया। वैज्ञानिक का कहना है कि ऐसा लगता है चांद की सतह से 330 मीटर ऊपर पर लैंडर विक्रम का इसरो के कंट्रोल रूम से संपर्क टूट जाएगा। सॉफ्ट लैंडिंग कई देशों के लिए चुनौती
चांद से जुड़े अंतरिक्ष मिशन के जनक देशों के लिए भी सॉफ्ट लैंडिंग एक बहुत बड़ा चैलेंज है। अमेरिका और रूस जैसे अंतरिक्ष विज्ञान के अग्रणी देशों के लिए भी यह एक बहुत बड़ी चुनौती है। चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग जीरो ग्रैविटी और अत्यधिक स्पीड के कारण बेहद मुश्किल काम है।
नासा ने ली चंद्रयान-2 के लैंडिंग साइट की तस्वीर चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर से फिर संपर्क स्थापित करने का समय नजदीक आने के साथ, नासा के मून ऑर्बिटर ने चांद के उस हिस्से की तस्वीरें खींची हैं, जहां भारत ने अभियान के तहत सॉफ्ट लैंडिंग कराने का प्रयास किया था। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने इसकी पुष्टि की है। नासा के लूनर रिकॉनिसंस ऑर्बिटर (एलआरओ) अंतरिक्षयान ने 17 सितंबर को चंद्रमा के अनछुए दक्षिणी ध्रुव के पास से गुजरने के दौरान वहां की कई तस्वीरें ली, जहां विक्रम ने उतरने का प्रयास किया था। एलआरओ मिशन के डिप्टी प्रोजेक्ट साइंटिस्ट जॉन कैलर ने एक बयान में कहा कि इसने विक्रम के उतरने वाले स्थान के ऊपर से उड़ान भरी। लैंडर से 21 सितंबर को संपर्क साधने का फिर प्रयास किया जाएगा। बता दें कि अब तक अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के ऑर्बिटर को भारत के मिशन चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम की तस्वीरें खींचने में सफलता नहीं मिल पाई। चंद्रमा पर रात होने की शुरुआत हो चुकी है और वहां अंधेरा छाने लगा है। नासा अब ऑर्बिटर के कैमरे में कैद तस्वीरों का विश्लेषण कर रहा है।
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