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सरकार और संगठन में शाह की दोहरी भूमिका की वजह से चुनाव में हुआ भाजपा का नुकसान

सरकार और संगठन में शाह की दोहरी भूमिका की वजह से चुनाव में हुआ भाजपा का नुकसान

सरकार और संगठन में शाह की दोहरी भूमिका की वजह से चुनाव में हुआ भाजपा का नुकसान
नई दिल्ली । हरियाणा और महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा का प्रदर्शन उसकी उम्मीद से कहीं कमजोर रहा है। हरियाणा में 70 के पार की बात करने वाली भाजपा को 40 सीटों से ही संतोष करना पड़ा है। उसे सरकार बनाने लायक सीटें भी नहीं मिली हैं। अब तक हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए चाणक्य की भूमिका अमित शाह ही निभाते रहे हैं, लेकिन इस बार पार्टी अध्यक्ष और गृहमंत्री के दोहरे दायित्व निभाने की वजह से वह पहले की तरह सक्रिय नहीं रहे और इसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा। पहले महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव प्रचार के समय भाजपा अध्यक्ष अमित शाह नेताओं और कार्यकर्ताओं के नजदीकी संपर्क में रहते थे। गृहमंत्री का पदभार संभालने के बाद पार्टी के लिए उनके समय में कटौती हो गई है और इससे भाजपा संगठन में बदलाव आया है। अब यह सवाल उठता है कि क्या गृहमंत्री अमित शाह इतना व्यस्त हैं कि उन्हें पार्टी के लिए पहले जितना समय नहीं मिल पा रहा है और इस वजह से भाजपा को पहले जैसी सफलता नहीं मिली।
अब तक के चुनावों में देखा गया है कि अमित शाह प्रत्याशियों का चुनाव इस ढंग से करते हैं कि उन्हें हराना आसान नहीं होता, लेकिन इस बार प्रत्याशियों के चुनाव मे भाजपा ने गंभीर चूके की हैं। भाजपा से बागी होकर चुनाव लड़ने वाले अधिकांश लोग चुनाव जीत गए हैं, जबकि जिन नए लोगों को टिकट दिए गए उनमें से अधिकांश को पराजय का मुंह देखना पड़ा। भाजपा के अधिसंख्य बागियों की सफलता साबित करती है कि नए प्रत्याशियों को मैदान में उतारने का प्रयोग भाजपा को भारी पड़ा है। हरियाणा में अपने ही नेताओं का संतुष्ट न कर पाने का मतलब यह भी है कि वहां का भाजपा नेतृत्व जमीनी हकीकत को समझ पाने में सफल नहीं रहा। अपने ही लोगों का विद्रोह और स्थानीय स्तर पर सत्ता विरोधी माहौल दोनों की वजह से निर्दलीय उम्मीदवारों को फायदा मिला। यदि पहले से इस पर ध्यान दिया जाता तो कोई उपाय निकाला जा सकता था। 
अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद पार्टी संगठन में एक खाली स्थान पैदा हो गया है। हालांकि नड्डा को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है, वह अपने स्तर पर सक्रिय भी हैं, लेकिन कार्यकारी अध्यक्ष के रुप में उनके अधिकार सीमित हैं और दूसरे उनकी अमित शाह की तरह हवा के रुख को भांपने की क्षमता का भी अभी परीक्षण होना बाकी है। महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के चुनाव के बाद संभव है, उनकी अध्यक्ष के रुप में ताजपोशी की जाए।
अमित शाह के काम करने का तरीका बिल्कुल अलग है। वह पार्टी नेताओं के साथ लगातार संपर्क में रहते हैं, उनकी यह आदत उन्हें एकजुट रखने में तो सहायक है ही, इससे उन्हें चुनावी मुद्दे तय करने में भी आसानी होती है। वह अपनी मुलाकातों को केवल पार्टी नेताओं तक ही सीमित नहीं रखते, वे कोर वोटर्स से भी मुलाकात करते और मुद्दों की जानकारी हासिल करते हैं। नड्डा को उनकी कार्यशैली का अनुकरण करना होगा, तभी वह अमित शाह की तरह संगठन के लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं। महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव नतीजों के बाद अब भाजपा के भीतर भी नए भाजपा अध्यक्ष की मांग उठने लगी है। हो सकता है कि झारखंड और दिल्ली के चुनाव से पहले जनवरी तक इसका फैसला हो जाए। अमित शाह ने भी संकेत दिए हैं कि जेपी नड्डा भाजपा अध्यक्ष का पदभार संभालेंगे। 

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