कार से निकली सीओ2 से बनेगा ईंधन, स्वीडिश वैज्ञानिक ने विकसित की तकनीक
एक स्वीडिश इलेक्ट्रोकैमिस्ट स्वांते एर्हेनियस ने 1895 में ही भविष्यवाणी की थी कि मानव निर्मित कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन नाटकीय रूप से पृथ्वी की जलवायु को बदल देगा। हम और आप जिस समय में रह रहे हैं उसने इसे 130 साल पहले आते हुए देख लिया था। पिछले पांच साल (2014-2018) अब तक के सबसे गर्म पांच साल दर्ज किए गए हैं। जैसा कि अरहेनियस को संदेह था, इस ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण कार्बन उत्सर्जन ही है। जो हम वायुमंडल में लगातार छोड़ रहे हैं।
कार्बन उत्सर्जन आज के युग की सबसे बड़ी समस्या बन गई है। 2017 के दौरान एक साल में इंसानों ने 36.8 बिलियन मीट्रिक टन ग्रीनहाउस गैस का उत्पादन किया था। दुनिया भर में पर्यावरण को खराब करने के लिए इतनी गैस काफी है। ज्यादातर दोष हमारा परिवहन ढांचा है। वैश्विक सीओ2 उत्सर्जन का लगभग 20 प्रतिशत कार, ट्रक, हवाई जहाज और अन्य वाहनों द्वारा होता है। क्या यह अच्छा नहीं होगा यदि हम सीओ2 को पतली हवा से बाहर निकाल सकें और इसे एक नए प्रकार के वाहन ईंधन में शामिल कर सकें जो पर्यावरण के लिए बेहतर हो? हम ऐसा करने के लिए तैयार हो सकते हैं। ऊर्जा अनुसंधान पत्रिका जूल ने हार्वर्ड के प्रोफेसर डेविड कीथ के नेतृत्व में एक अध्ययन प्रकाशित किया। एक प्रायोगिक भौतिक विज्ञानी और सार्वजनिक नीति विशेषज्ञ, कीथ ने 2009 में कंपनी कार्बन इंजीनियरिंग (सीई) की स्थापना की। संगठन का मिशन ऐसी तकनीक का विकास और व्यवसायीकरण करना है, जो सीधे तौर पर हवा से सीओ2 की मात्रा को नियंत्रित करती है।
यह तकनीक ठीक उसी तरह से काम करती है जैसे प्राकृतिक रूप से पौधे सूरज की रोशनी मिलने पर कार्बन डाईऑक्साइड से ऑक्सीजन बनाते हैं। वैज्ञानिक अब एक ऐसा कृत्रिम पत्ता बनाने में सफल हो गए हैं, जो हवा में मौजूद कार्बन डाईऑक्साइड को ईंधन में बदल सकता है। यह तकनीक ठीक उसी तरह से काम करती है जैसे प्राकृतिक रूप से पौधे सूरज की रोशनी मिलने पर कार्बन डाईऑक्साइड से ऑक्सीजन बनाते हैं। प्राकृतिक प्रक्रिया को फोटोसिंथेसिस कहा जाता है।
कृत्रिम पत्ता असली पेड़ की तरह यह काम कप्रस ऑक्साइड नाम के एक लाल पाउडर की मदद से करता है। इस प्रक्रिया में कार्बन डाईऑक्साइड से मिथेनॉल और ऑक्सीजन का निर्माण होता है। नेचर एनर्जी पत्रिका में प्रकाशित इस शोध के मुताबिक इस कृत्रिम पत्ते से निकले पदार्थ को गरम करके इसमें मौजदू पानी को अलग किया जा सकता है। बचा हुआ पदार्थ मिथेनॉल होगा। वाटरलू यूनिवर्सिटी के प्रोफसेर और इस वैज्ञानिक खोज के मुख्य शोधकर्ता यिमिन वू के मुताबिक इस कृत्रिम प्रक्रिया की दक्षता प्राकृतिक प्रक्रिया से 10 गुना अधिक है। वू ने बताया कि अब अगला कदम उद्योगों के साथ मिलकर इस खोज को अमल में लाया जाए और व्यावसायिक उत्पादन किया जाए।