19 राज्यों की जेल 100 प्रतिशत क्षमता से ज्यादा भरीं,1 लाख लोगों पर 33 कैदी
देशभर के 19 राज्यों की जेल अपनी 100 फीसदी क्षमता से ज्यादा भरी हैं। इन जेलों में 67.7 फीसदी वहां कैदी हैं, जो अंडरट्रायल हैं। यानी जिनका केस या तो अभी सुना जा रहा है, या उनके आरोपों की जांच चल रही है। आश्चर्यजनक बात ये है कि एक दशक पहले भी जेलों में 66 फीसदी अंडरट्रायल कैदी बंद थे। दस साल बाद भी अंडरट्रायल कैदियों की संख्या कम होने के बजाय बढ़ गई है। देश की हर एक लाख की आबादी पर 33 लोग जेल में बंद हैं। हालांकि, यह ब्राजील और रूस जैसै ब्रिक्स देशों की तुलना में काफी कम है। वर्ष 2016 में राष्ट्रीय स्तर पर जेल की ऑक्यूपेंसी दर 114 फीसदी रही थी। देशभर की जेलों में इस समय चार लाख से अधिक कैदी बंद हैं। इनमें से करीब 67.7 फीसदी यानी करीब 2.70 लाख कैदी अंडरट्रायल हैं। रिपोर्ट के अनुसार जेलों की क्षमता के हिसाब से उनमें बंद कैदियों की संख्या बहुत अधिक पाई गई है। जबकि, जेल अधिकारी, कैडर कर्मचारी, सुधारक कर्मचारी, चिकित्साकर्मी और डॉक्टर सभी स्तरों पर कर्मचारियों की कमी पाई गई है। राष्ट्रीय स्तर पर जेलों में औसतन 33 से 38.5 फीसदी पद खाली हैं। दिसंबर 2012 से दिसंबर 2016 के बीच ये रिक्तियां 10 फीसदी बढ़ गईं। तीन राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को छोड़ दें,तब वर्ष 2016 में सभी राज्यों में बहुत अधिक रिक्तियां पाई गईं। रिपोर्ट के अनुसार जेलों में कैदियों की काउंसिलिंग के लिए मनोविज्ञानी/मनोचिकित्सक को होना जरूरी है। ताकि उनमें मानसिक सुधार लाकर मुख्यधारा में शामिल किया जाए। मॉडल प्रिजन मैन्युअल 2016 के अनुसार हर 200 कैदियों के लिए एक सुधारक अधिकारी की नियुक्ति और प्रत्येक 500 कैदियों के लिए मनोवैज्ञानिक की नियुक्ति का सुझाव दिया है। 2016 में राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक 2033 कैदी के लिए एक कल्याण अधिकारी और 21,600 कैदियों के लिए एक मनोविज्ञानी नियक्त पाए गए।
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