कानपुर जू के वन्यजीवों के लिए प्रदूषण बना जानलेवा, बदला बर्ताव
वायु प्रदूषण के लिए बदनाम रहे कानपुर की खराब आबोहवा का असर अब वन्यजीवों पर भी पड़ने लगा है। बता दें कि जबर्दस्त वायु और ध्वनि प्रदूषण से वन्यजीवों का बर्ताव बदल रहा है। दरअसल, अक्टूबर में हुए एक बाघ का मौत के बाद पोस्टमॉर्टम किया गया तो उसके फेफड़ों में धूल के अलावा कई बाहरी तत्व चिपके मिले है। हालांकि पिछले 2-3 साल में भी मरने वाले कई अन्य जीवों के फेफड़ों में ऐसी समस्याएं मिली हैं। बताया जाता है कि 76 हेक्टेयर में फैले एलेन फॉरेस्ट कानपुर प्राणिउद्यान को कभी अपने कुदरती वातावरण के लिए जाना जाता था। लेकिन पिछले कुछ साल में कानपुर विकास प्राधिकरण ने विकास नगर क्षेत्र में जू की बाउंड्री से सटाकर हाउसिंग प्रॉजेक्ट शुरू कर दिया गया। इसके शुरुआती दौर में बिना पर्यावरणीय ऑडिट कराए काम चला और यहां से निकली बेहिसाब धूल और शोर ने वन्यजीवों का परेशान कर दिया। बताया जाता है कि इस शहरी जंगल शुद्ध हवा के लिए विख्यात माना जाता था, लेकिन अब इन पेड़ों की पत्तियां धूल से लद गईं। केंद्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने काम रोका, लेकिन कुछ शर्तों के साथ काम दोबारा शुरू हो गया। इस बीच पिछले कुछ साल से अक्टूबर से फरवरी के बीच लगातार बढ़ रहे वायू प्रदूषण ने हालात खराब कर दिए। फिलहाल प्राणिउद्यान में करीब 125 प्रजातियों के वन्यजीव हैं। केडीए की परियोजना के अलावा खराब होती हवा का असर बेजुबानों की सेहत पर साफ दिख रहा है। वहीं, बताया जा रहा है कि बीते अक्टूबर में प्राकृतिक तौर पर दम तोड़ने वाले बाघ का पोस्टमॉर्टम हुआ तो हर कोई हैरान रह गया। उसके फेफड़े काले पड़ चुके थे। इसमें धूल और अन्य बाहरी तत्व थे, जो सांस के रास्ते बाघ के श्वसन-तंत्र तक पहुंच थे। करीब तीन साल पहले शोर से तंग आकर मादा गैंडे ने अपने सींग तोड़ लिए थे। इसके चलते बढ़ते ध्वनि प्रदूषण के कारण पर्वतीय भालू और गैंडे के जोड़े प्रजनन से दूर हो गए हैं। ये शांतिप्रिय वन्यजीव शोर से दुखी हो गए और अपने पार्टनर से किनारा कर लिया। विशेषज्ञों के अनुसार, शांति में इनके शरीर में अलग हार्मोन्स रिलीज होते हैं, जो प्रजनन में सहायक होते हैं, लेकिन शोर के कारण इनका रिसाव रुक जाता है।
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