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मीडिया में लड़ी जा रही है आतंकवाद और पाकिस्तान के खिलाफ जंग

मीडिया में लड़ी जा रही है आतंकवाद और पाकिस्तान के खिलाफ जंग

पिछले कई महीनों से आतंकवाद एवं पाकिस्तान के खिलाफ कार्यवाही को लेकर मीडिया में रोजाना डिबेट हो रही हैं। इस डिबेट में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता, सैन्य अधिकारी, जम्मू कश्मीर के नेता अपनी-अपनी बात रख रहे हैं। डिबेट के दौरान जिस तरह से अपशब्दों और धमकी का प्रयोग नेताओं और सैन्य अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है उससे जम्मू कश्मीर में स्थिति 2014 की तुलना में और खराब हुई है। पाकिस्तान के साथ संबंध खराब हुए हैं। अब युद्ध जैसी स्थितियां निर्मित हो गई हैं। मई 2014 से 17 जून 2018 तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में आतंकवाद में 161 आम नागरिक मारे गए। 303 जवान शहीद हुए। वहीं 701 आतंकवादियों को सेना मारने में सफल रही। वहीं 2004 से 2014 के मनमोहन सिंह के 10 साल के कार्यकाल में आतंकी घटनाओं के कारण 1788 आम लोग मारे गए थे। 1177 जवान शहीद हुए थे। 4241 आतंकी मारे गए थे। 2014 में लोकसभा में पूर्ण बहुमत की भाजपा की सरकार बनी। जम्मू-कश्मीर में पहली बार पीडीपी के साथ मिलकर भाजपा ने सरकार बनाई। इसके बाद भी जम्मू कश्मीर में आतंकवादी घटनाएं घटने के स्थान पर और बढ़ी उल्टे दोनों देशों के बीच संबंध बेहद खराब हो गए।
पिछले सालों में सरकार ने सैकड़ों आतंकवादियों को मारने के दावे किए। जितने आतंकवादी मारे गए, उससे आधे सैनिक भी मारे गए। यह सभी सैनिक भारतीय सीमा में ही मारे गए। भारतीय जवानों के बड़ी संख्या में शहीद होने से मोदी सरकार की छवि आम आदमियों के बीच गिरी है। लोकसभा चुनाव के पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिन बातों के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जिम्मेदार ठहराते थे, सरकार में आने के बाद, वह उन पर कोई नियंत्रण नहीं कर पाए। जिसके कारण जम्मू कश्मीर और देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कद्दावर छवि को काफी नुकसान पहुंचा है। मीडिया में डिवेट के दौरान जिस तरह नेता, सैन्य अधिकारी और मीडिया के एंकर पाकिस्तान को लेकर जिन शब्दों का उपयोग करते हैं, जिस तरह से ललकारते हैं। जिस तरह से आतंकवादियों को स्टूडियो में बैठकर गाली बकते हैं, उससे स्थिति सुधारने के स्थान पर और भी बिगड़ती जा रही है। मीडिया के कारण सभी पक्षों के बीच अविश्वास नफरत तथा गुस्से का वातावरण निर्मित हो गया है। पाकिस्तान के हुक्मरान जिस तरह सेना और मीडिया का उपयोग कर, सत्ता में पहुंचते थे, लगभग वही स्थिति अब भारत में भी देखने को मिल रही है। उल्लेखनीय है, कि किसी के ऊपर भी हमला चिल्ला चिल्ला कर नहीं किया जाता है। नाही कोई देश और सेना अपनी रणनीति को मीडिया में उजागर करती है।
1971 का युद्ध पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बड़ी विषम स्थितियों में लड़ा था। इस युद्ध में गोपनीयता और कूटनीति के कारण ही पाकिस्तान को कुछ ही दिनों की युद्ध में आत्मसमर्पण के लिए, भारतीय सेना ने मजबूर कर दिया था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में पूर्वी पाकिस्तान को तोड़कर इंदिरा गांधी ने मुजीब उर रहमान के नेतृत्व में नया बांग्लादेश बनवा दिया। इस युद्ध की सबसे बड़ी खासियत यह थी, की इंदिरा गांधी ने रूस के साथ सैन्य समझौता किया। उसके बाद बड़े गोपनीय तरीके से बांग्लादेश की आजादी की मांग कर रहे लोगों को पाकिस्तान से लड़ाकर भारतीय सेना ने पीछे से बांग्लादेश के योद्धाओं की मदद की। पाकिस्तान के समर्थन में अमेरिका के नौसेना का सातवां बेड़ा भारत की सीमा में आने के बाद भी, अमेरिका को अपना बेड़ा लौटाना पड़ा। पाकिस्तान के हजारों सैनिकों को समर्पण करना पड़ा। इसकी भनक कभी मीडिया को इंदिरा गांधी और सेना ने नहीं लगने दी थी, जिसके कारण वह अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे भी नहीं झुकी। 
केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद मीडिया विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सरकार के इशारे पर काम कर रहा है। मीडिया मैं विदेशी निवेश होने के बाद, मीडिया पूरी तरीके से गैर जिम्मेदार और व्यवसायिक बन गया है। सरकार के इशारे पर लगभग सभी चैनल रोजाना डिबेट आयोजित करते हैं। उत्तेजना फैलाकर एक वातावरण बनाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक चैनल के एंकर भी अब एक पक्ष बनकर काम करते हुए नजर आते हैं। जिसके कारण मीडिया का रोल पूरी तरह से खत्म हो गया है। मीडिया सरकार के इशारे पर काम करने वाला एक व्यवसायिक संस्थान बनकर काम कर रहा है। पुलवामा की घटना के बाद मीडिया ने पिछले दो हफ्तों में जिस तरह का वातावरण सारे देश में बनाया है, उससे देश में भय का वातावरण बना है। वहीं पाकिस्तान के हुक्मरानों को भी अपने देश में अपनी इज्जत बचाए रखने के लिए उत्तेजक बयान देने के लिए, विवश होना पड़ रहा है। अब युद्ध जैसी स्थिति दोनों देशों के लिए बन गई है।
पुलवामा की घटना का बदला लेने के लिए भारत सरकार ने पाक अधिकृत कश्मीर के आतंकवादी ठिकानों पर हमले कर उन्हें नष्ट कर दिया। मंगलवार को पाकिस्तान सरकार के विमान का भारतीय सीमा में घुसना, भारतीय वायु सेना के विमान का उसे खदेड़ना, और भारतीय विमान पाकिस्तान की सीमा में पहुंच जाने से पाकिस्तान की सेना द्वारा गिराए जाने पर, वायु सेना के कैप्टन अभिनंदन कोजीवित गिरफ्तार करने की घटना को, मीडिया तूल दे रहा है। अभिनंदन के साथ पाकिस्तानी सेना द्वारा मारपीट करने और बंदी बनाने के विरोध में जिस तरह आम जनमानस को उत्तेजित किया जा रहा है, उससे देश में युद्ध का वातावरण बन रहा  है। स्वाभाविक है, जब इस तरह की कार्रवाई होती है, तब सेना के जवान इसी तरह प्रताड़ित होते हैं। अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत सरकारें अपने सैनिकों का बचाव करती हैं, उन्हें जीवित रखते हुए, वापस लाने का प्रयास करती हैं। लेकिन मीडिया में जो हो रहा है, वह समझ से परे हैं।
अप्रैल एवं मई माह में लोकसभा के चुनाव होना है। पुलवामा की घटना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सभाओं में जिस तरह बदला लेने की बातें कहकर, देश में ध्रुवीकरण की स्थिति पैदा करने, और लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के पक्ष में वातावरण बनाने का काम किया है, उससे विपक्ष को यह आरोप लगाने का मौका मिल गया है, कि भारतीय जनता पार्टी पुलवामा और उसके बाद की गई, सैन्य कार्यवाही का राजनीतिक लाभ लेने के लिए, इस तरह का वातावरण लोकसभा चुनाव के पूर्व जानबूझकर बना रहा है। विपक्ष ने सैन्य कार्रवाई का समर्थन करते हुए सरकार की और सेना की कार्रवाई का पुरजोर समर्थन किया है। सरकार और मीडिया जिस तरह से ढोल मजीरा पीट-पीटकर उत्तेजना का वातावरण तैयार कर रहे हैं, उससे यह तो निश्चित है, कि सरकार चाह कर भी पाकिस्तान के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई नहीं कर सकती है। भारत और पाकिस्तान दोनों के पास न्यूक्लियर बम है। युद्ध होने की दशा में कोई भी देश इसका उपयोग करेगा, तो बड़े पैमाने पर सारे विश्व में इसका असर होगा। अमेरिका, चीन, सऊदी अरब इत्यादि, देश भारत और पाकिस्तान के ऊपर युद्ध ना होने देने के लिए पर्याप्त दबाव बना रहे हैं। भारत और पाकिस्तान दोनों युद्ध करने की स्थिति में नहीं है। लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए यह माना जा रहा है, कि भारतीय जनता पार्टी इस स्थिति का लाभ उठाकर चुनाव जीतना चाहती हैं। यह आरोप विपक्षी लगा रहे हैं। इसमें कुछ गलत भी नहीं है। अब आम आदमी भी यह कहने लगा है, कि जिस तरह से पाकिस्तान के हुक्मरान अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए हिंदुस्तान के खिलाफ वहां मीडिया के माध्यम से विष वमन करते रहे हैं। सत्ता में बने रहने के लिए सेना का उपयोग अपने राजनीतिक हितों के लिए पाकिस्तान के नेता करते थे। लगभग वही स्थिति अब भारत में भी बन गई है।

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